वर्षा
काले -काले बादल,
दूर देश से आते हैं ।
पानी खूब बरसाते हैं ।।
चम-चम बिजली चमके,
मेंढ़क टर्रा के टेर लगाते हैं ।
पक्षी जोर-जोर से शोर मचाते हैं ।।
चारों ओर छा जाती हरियाली,
मिट्टी सौंधी खुशबू देती है ।
ताल-तलैया, नदी-पोखर मुस्काती हैं।।
कीचड़- कीचड़ होता चहुंओर,
थोड़ी परेशानी तो आती है ।
वर्षा नवजीवन दे जाती है ।।
बुझती सब की प्यास,
छम -छम बूंदें बरसती हैं ।
काली-पीली छतरियां खुलती हैं ।।
आसमान में इंद्रधनुष निराला,
गली में कागज की नाव चलती है ।
सबकी खाली गगरी भरती है ।।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा