लघुकथा – आंसू
सलोनी बिटिया की फरमाइशों को विराम ही नहीं लग रहा था, ‘पापा ! चॉकलेट लाना, टॉफी लाना, बिस्किट लाना, सेब लाना और बड़ी -बड़ी आंखों वाली गुड़िया लाना जिसके सुनहरे बाल हों और लाल कलर की फ्रॉक पहने हो ।’ समीर मौन स्वीकृति में सिर हिला -हिलाकर हामी भर रहा था, कि तभी पीछे से समीर की पत्नी आ गई ।
‘सुनो ! थोड़ा जल्दी तैयार होकर निकल जाओ, नहीं तो कल की तरह आज भी काम नहीं मिलेगा । फिर कहां से पूरी करोगे बिटिया की फरमाइशें ।’
पत्नी की गंभीर बात सुनकर समीर ने जल्दी-जल्दी हाथ चलाकर नहाने -धोने का काम निपटाया और कपड़े पहनकर सलोनी से टाटा बाय-बाय करते हुए काम की तलाश में बाहर निकल गया । सलोनी बिटिया अपने पापा को तब तक देखती रही जब तक समीर लंबी सड़क पर आंखों से ओझल न हो गया ।
सलोनी की मां रसोई घर से उसके लिए कुछ खाने को लाई । अपनी बेटी की गोल – मटोल स्वच्छ भूरी आंखों में निश्छलता और अपनों के प्रति प्यार को देख, उसकी भावनाएं जागीं तो उसने अपनी बेटी को सीने से चिपका लिया । आंखों से आंसू स्वत निकल गये । मन ही मन उसने ईश्वर से प्रार्थना की प्रभु ! आज मेरे पति को काम अवश्य मिल जाये। डबडबाई आंखों से वह खुद आंसू पोंछती तब तक सलोनी बिटिया ने अपनी मम्मी के आंसू पोंछ दिये ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा