बादल
घम-घम-घम बादल गरजे,
चम-चम-चम बिजली चमके।
काले-काले बादल ऐसे भागे,
जैसे सागर में नौकाएं दौड़े।।
झम-झम-झम वृष्टि बरसे,
अंग-अंग धरा का भीगे।
इला मन ही मन इठलाए,
जैसे जलपरी जल मे इतराए।।
खेतों में हरियाली छाए,
पीली-पीली सरसों लहराए।
उर्वि का तारूण्य निखरे,
जैसे स्वर्ग से अप्सरा उतरे।।
मिट्टी की सोंधी खुशबू आए,
पुष्प डाली-डाली मुस्काए।
मालती का रूप सवंर जाए,
जैसे नववधू का सोदंर्य निखरे।।
खग-मृग धमा चौकड़ी मचाए,
शाख पर पिक मधुर गीत सुनाए।
नीलकंठ इन्द्रधनुषीय पंख फैलाए,
जैसे बादल रंगों की बौछार कराए।।
— प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’