चारों ओर दिखता है पानी।
आती जब है वर्षा रानी।।
पानी – पानी बरसा पानी।
होती इससे बहुत परेशानी।।
बहुत तेज जब वर्षा आई।
बाढ़-तबाहि वह साथ लाई।।
वर्षा ऋतु का हम देखें हाल।
अस्त-व्यस्त अर सब बेहाल।।
वर्षा परेशानी ही नहीं लाती।
खुशहाली भी वह दे जाती।।
फैलती इसी से है हरियाली।
दिखती प्रकृति अति निराली।।
करते किसान हैं धान रोपाई।
अन्न-धन की होती भरपाई।।
आषाढ़-सौंण की बात निराली।
शुष्क धरा में फैली हरियाली।।
वन-विकास की जागृति लाई।
शुद्ध हवा तब घर-घर आई।।
हरी-भरी धरती की यह शान।
पौध लगाने का कार्य महान्।।
वर्षाकाल में कहीं भी जाना।
कठिनाई होती मंजिल पाना।।
बरतें सुरक्षा अरु सावधानी।
होगी नहीं फिर कोई परेशानी।।
वर्षाऋतु की यह सच्ची कहानी।
हुआ अनुभव तब हमने जानी।।
चारों ओर दिखता है पानी।
आती जब है वर्षा रानी।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट ‘स्नेहिल’