मेरी नेपाल यात्रा
मुझे घूमने- फिरने का शौक हमेशा से ही रहा है । मैंने अब तक के जीवन में बहुत अधिक यात्राएं तो नहीं कीं, लेकिन कभी कभार ऐसे संयोग बन जाते हैं कि यात्रा का शुभ मुहूर्त निकल ही आता है । मुहूर्त भी ऐसा कि एक पैसा अपनी जेब से खर्च न हो और आदमी विदेश घूम आये, वो भी रत्ती भर परेशानी के बगैर । जी हां ! मैं बात कर रहा हूं अपनी नेपाल यात्रा की ।
8 जून 2022 को दोपहर में घर से निकला और पहुंच गया गांव के बगल से गुजर रहे यमुना एक्सप्रेस वे (आगरा- लखनऊ एक्सप्रेस वे) पर क्योंकि यहीं से मेरी यात्रा प्रारंभ होने वाली थी । चाचा कीरतराम के लड़के प्रहलाद के साथ बाइक से हाइवे तक पहुंचा और थोड़ा सा इंतजार किया कि गाड़ी आ गई । आपको बता दूं कि यात्रा की रूपरेखा पहले से ही बन गई थी । विकास जी ने ऑनलाइन लोकेशन मुझे भेज दी थी, इसलिए उसी के अनुसार घर से निकला था । आ. नरेश जी से मेरी फोन पर लगातार बात चल रही थी ।
गाड़ी बड़ी थी, फोर्स कंपनी की टूरिस्ट गाड़ी थी । गाड़ी में हरियाणा निवासी आदरणीय डॉक्टर नरेश कुमार सिहाग एडवोकेट, डॉ. सुलक्षणा अहलावत, विकास शर्मा व विकास जी के पुत्र -पुत्री एवं सासू मां व ड्राइवर सहित सात यात्री और मुझ सहित कुल आठ यात्री हो गये । गाड़ी में खाने-पीने की हल्की सामग्री व कार्यक्रम का अन्य सामान ट्राफी आदि विकास जी साथ लाए थे । गाड़ी पूरी तरह से फुल थी । मेरी यात्रा प्रारंभ हो चुकी थी । मैं आ. नरेश जी के बगल में बैठा था । ठंडी- ठंडी ए.सी. चल रही थी, सफर काफी आनंददायक था । मैं अपने क्षेत्र के संबंध में नरेश जी से बातें कर रहा था, गाड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ रही थी । बीच-बीच में नमकीन, बिस्किट, पॉपकॉर्न, चिप्स आदि का दौर भी चलता रहा ।
देखते-देखते लखनऊ निकल गया । आगे हाईवे के बगल से बने एक स्वच्छ ढाबे पर सब ने मिलकर खाना खाया और गाड़ी आगे के सफर पर चल पड़ी । खाना खाने के बाद हमारी आंखों में झपकी आना शुरू हो चुकी थी । मैं तो बैठे-बैठे ही सो गया, अन्य का मुझे पता नहीं । आंख खुली तो सुबह के तीन बजे थे । हम लगभग भारत- नेपाल बॉर्डर सोनौली पर पहुंच चुके थे । बॉर्डर सुबह छः बजे खुलने वाला था । हम लोग गाड़ी से नीचे उतर कर टहलने लगे । एक-दो घंटे हमने टहलने में गुजार दिये । वहीं सार्वजनिक शौचालय में फ्रेश हुए । धीरे-धीरे गाड़ियों की लंबी कतार लगने लगी थी । ऐसे – तैसे बॉर्डर पार करने का समय भी आ गया । ह्रदय में रोमांच था, पहली बार देश से बाहर कदम रख रहा था । गाड़ी की कागजी कार्यवाही शुरू हो चुकी थी । हम लोग पैदल ही नेपाल की धरती पर प्रवेश कर गए । एक नेपाली होटल में नहाए धोए । धीमे-धीमे दस बज गये । हमारा फोन कुछ- कुछ काम कर रहा था, क्योंकि हम अभी भारत की सीमा के नजदीक ही थे । गाड़ी की कागजी कार्यवाही पूर्ण हो चुकी थी । हम निकलने ही वाले थे कि हमारा ड्राइवर कहीं गुम हो गया । हमने उसे बहुत ढूंढा पर न मिला । उसका नंबर काम नहीं कर रहा था । बाद में पता चला बंदा हेयर कटिंग कराने चला गया था ।
खैर अब हमारा सफर आगे के लिए शुरू हो चुका था । हमें अभी भी माहौल बिल्कुल भारत जैसा ही लग रहा था । नेपाल का पहाड़ी क्षेत्र, प्राकृतिक सौंदर्य अभी शुरू नहीं हुआ था । टूटी-फूटी सड़कों से हम गुजर रहे थे । आगे एक स्वच्छ नेपाली ढाबे पर खाना खाया और फिर निकल पड़े आगे के सफर पर ।
जिंदगी की पहली विदेश यात्रा थी मेरी, यात्रा काफी सुखद रूप में प्रारंभ हुई । अब धीमे-धीमे पहाड़ी क्षेत्र शुरु हो गया । प्राकृतिक सौंदर्य देखकर हृदय गदगद हुआ जा रहा था । हमने अपने-अपने फोन निकाल लिए और सुंदर नजारों को कैद करने लगे । आसमान को छूते पहाड़, पहाड़ों पर पेड़ ही पेड़, पानी के स्वच्छ झरने जगह-जगह बह रहे थे । वाह ! क्या नजारा था । ऊंचे व पहाड़ी क्षेत्र की घुमावदार सड़कें हृदय झंकृत कर देतीं । अद्भुत नजारों का लुफ्त उठाते हुए मुख्य मार्ग पर हमारी गाड़ी चल रही थी, शाम का समय हो रहा था । अचानक हमें जाम मिल गया । जानकारी की तो पता चला कि आगे पहाड़ टूटने से सड़क बंद है । विकास जी ने ड्राइवर से बात की और लोकल रास्ते से हम काठमांडू के लिए गाड़ी वापस करके चल पड़े । खेतों से, पगडंडियों से, नदी के बीचो-बीच से नेपाली ग्रामीण क्षेत्र के दर्शन करते हुए हमारी गाड़ी उल्टी-सीधी होते हुए चल रही थी । रास्ता काफी जोखिम भरा था ।
अब घुप्प अंधेरा हो चुका था । हमारी गाड़ी पक्की सड़क पर आ चुकी थी । परंतु रास्ता काफी घुमावदार व ऊंची पहाड़ी पर था । गाड़ी गर्म होकर बंद हो गई । जंगल के बीचो बीच अचानक गाड़ी ने हमें डरा दिया । हमने धक्का मारकर गाड़ी थोड़ी साईड से लगाई ताकि अन्य गाड़ियां निकल सकें । हम ऊपर पहाड़ी पर टहलने लगे । पहाड़ी के नीचे बसे गांवों के घरों में जल रही लाइट्स बड़ी ही सुंदर लग रही थीं । तभी एक गाड़ी वाला चिल्लाया, टाइगर आ जाता है… ऐसे मत टहलो, परंतु हमने उसकी बात पर खास ध्यान नहीं दिया । गाड़ी को ठंडा करने के लिए इंजन में पानी मारा और उसे खुला छोड़ दिया । करीब आधा घंटे बाद हमारी गाड़ी स्टार्ट हो गई । हम धीमे-धीमे काठमांडू पहुंच गये ।
होटल रीडर्स में रूम पहले से ही बुक थे । हम करीब सुबह के दो बजे होटल पहुंच गये । बरसात हाल ही में बंद हुई थी । थोड़ी-बहुत बूंदाबांदी हो रही थी । कुछ लोगों ने चाय पी । खाने की इतनी रात में कोई व्यवस्था नहीं थी, इसलिए हमने खाने के संबंध में सोचा भी नहीं । हाथ -पैर, मुंह धो कर सो गये । सुबह जागे फ्रेश हुए और रूम बदल लिया, क्योंकि पहले वाले कमरे में बेड का प्रॉब्लम था । सारा दिन खा- पीकर रूम में आराम किया ।
दस जून की शाम को आ. नरेश जी और मैं पशुपतिनाथ के दर्शन करने गये । बहुत भीड़ थी । मंदिर भव्य व प्राचीन, मन पुलकित हो गया । ग्यारह-बारह तारीख को हम कार्यक्रम में ही व्यस्त रहे । दिनभर होटल से बाहर कहीं नहीं जा पाये । भारत से तमाम प्रतिष्ठित महानुभाव कार्यक्रम में उपस्थित होने के लिए आये थे । वे हमारे आसपास के होटलों में ही ठहरे थे, इसलिए समय-समय पर अन्य होटलों में भी घूमने का मौका मिला ।
तेरह तारीख को विकास जी ने होटल की एक गाड़ी बुक की और हम निकल पड़े नेपाल की अन्य ऐतिहासिक व प्राचीन जगहों को देखने । हम लोग अधिक थे, गाड़ी में बैठने की जगह कम फिर भी हम एडजस्ट हो गये ।
सबसे पहले हमने बौद्ध स्तूप देखा जिसे बौद्ध नाथ कहते हैं । यह नेपाल का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है । यह एक विश्व धरोहर है । दर्शन करने के बाद हमारी गाड़ी आगे बढ़ गई ।
हम पहुंच गये बूढ़ा नीलकंठ मंदिर में । बूढ़ा नीलकंठ (बुध निलकंठ) मंदिर नेपाल का एक खुला हिंदू मंदिर है । भगवान विष्णु की विशाल काले रंग की मूर्ति पानी के बीच में शेषनाग पर सोई हुई मुद्रा में है । ह्रदय धन्य- धन्य हो गया दर्शन करके ।
हमारा अगला दर्शनीय स्थल था स्वयंभूनाथ ! इसे स्वयंभू स्तूप के नाम से भी जाना जाता है । यह एक अति प्राचीन बौद्ध स्तूप है । यहां पर तिब्बती संस्कृति को बड़ी ही नजदीकी से देखा जा सकता है । प्राचीन व ऐतिहासिक भवन निर्माण कला हृदय को गदगद कर देती है । इसके पास में ही सरस्वती मंदिर भी है । यहां विशाल मूर्ति भगवान गौतम बुद्ध की है । शाम होने को आई, इसलिए हम होटल लौट आए ।
धीमे- धीमे सभी मेहमान विदा हो चुके थे । हम वही लोग बचे जो सबसे पहले नेपाल पहुंचे थे ।
भूल से कुछ अन्य तीर्थस्थलों का जिक्र छूट गया, उनके बारे में भी बताता हूं । मैं, आ. नरेश जी व आ. महावीर गुड्डू जी बारह तारीख की सुबह पशुपतिनाथ मंदिर के बगल से होते हुए गुह्येश्वरी मंदिर के दर्शन करने लंबी पहाड़ी चढ़ाई चढ़कर गये। सैकड़ों बड़ी-बड़ी सीढ़ियों को चढ़ने में ही दम फूला जा रहा था । आदि शक्ति को समर्पित यह मंदिर बहुत सुंदर है, दर्शन करके हृदय तृप्त हो गया । वैसे माता रानी के दर्शन हमने दो बार किये जब हम दूसरी बार गए तो गुड्डू जी की जगह विकास जी थे । मुझे व विकास जी को मंदिर की एक सेविका ने फूल भेंट किए जो माता रानी का प्रसाद था । विकास जी ले आए और मैं भूलवश वहीं मुख्य दरवाजे की चौखट के ऊपरी हिस्से में रख आया । तेरा तुझी को अर्पण…।
इस बीच हमने गुरु गोरक्षनाथ पीठ, मृगस्थली आदि प्रमुख व भव्य स्थलों को भी देखा ।
चौदह तारीख को नेपाल से विदा होने का समय आ गया । सुबह-सुबह हमने अपना सामान पैक किया और काठमांडू को बाय- बाय कर के निकल पड़े । निकलते समय हमने रुद्राक्ष का वृक्ष देखा और रुद्राक्ष भी तोड़े ।
रास्ते में हमने मनोकामना मंदिर के दर्शन करने का विचार बनाया । केबिल कार (उड़न खटोला) से पहाड़ी पर पहुंचे । केबल कार का सफर बहुत ही रोमांचकारी था । नदियों, पहाड़ों, गांवों के ऊपर से गुजरने का आनंद हृदय को रोमांचित करने वाला था ।
मनोकामना मंदिर के दर्शन करने हम पैदल हजारों सीढ़ियों को चढ़कर ऊपर पहुंच गये । कतार में लगकर माता रानी के दर्शन किए । जीवन सफल हो गया । कहा जाता है कि मनोकामना मंदिर / मनकामना मंदिर में बलि प्रथा आज भी प्रचलित है । सुनने में यह भी आता है कि नेपाल सरकार ने अब रोक लगा दी है । खैर जो भी हो मंदिर प्रांगण में सजा प्राचीन कलात्मक वस्तुओं का बाजार हृदय को बहुत आकर्षित करता है । पहाड़ी के ऊपर से नीचे का नजारा… वाह ! कितना सुंदर… शब्दों में बता पाना बेहद मुश्किल । वापिस लौट कर हमने वहीं एक रेस्टोरेंट में खाना खाया और उड़न खटोले की लाइन में लग गये ।
हमारी गाड़ी के पहिए अपने हिसाब से घूमते रहे और हम पहाड़ी क्षेत्र को पार करके मैदानी क्षेत्र में प्रवेश कर गये । नौ बजे के आसपास एक नेपाली ढाबे पर खाना खाया और सरपट निकल पड़े, क्योंकि बॉर्डर बंद होने का समय नजदीक था । जब हम बॉर्डर पर पहुंचे तो लगभग बॉर्डर बंद होने ही वाला था । अपने देश के सिपाहियों की दरियादिली से हम अपने देश की सीमा में प्रवेश कर गये । दो मिनट भी लेट हो जाते तो सारी रात मच्छरों को मारते हुए नेपाल और भारत के बीच में खाली पड़ी जमीन (नो मैंस लैंड) पर ही गुजारनी पड़ती ।
हमारे फोन काम करने लगे। गाड़ी अपनी गति से सरपट दौड़ती रही । रात गुजरी… सुबह हुई । मैं जहां से गाड़ी में बैठा था वहीं उतर गया ।
मेरी नेपाल यात्रा बेहद सुखद रही । मैं अपनी इस यात्रा का श्रेय डॉक्टर नरेश कुमार सिहाग एडवोकेट, विकास शर्मा व डॉ. सुलक्षणा अहलावत जी को देता हूं ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा