लघुकथा

बारिश और जायका

दो दिनों से लगातार बारिश हो रही है, जो थमने का नाम ही नहीं ले रही है.  टूटी छप्पर से विमला परेशान हो गयी है.  जगह जगह से छप्पर टूटी हुई है तो पानी अंदर आ रहा है. पानी टपके वाले जगहों पर बर्तन रखते हुए वह परेशान हो गयी फिर काम पर जाने में भी देर हो रही थी.
                  जैसे जैसे वह काम पर पहुंची , मालकिन तो सुनाने को तैयार खड़ी थी.”इतनी देर कर दी आने में, कहाँ थी अब तक”.दीदी, वो बारिश हो… “हां मालूम है बारिश बस तेरे लिए नही सभी के लिए  हो रही है, चल जल्दी से बर्तन साफ कर मुझे पकौड़े बनाने हैं”.”अरे यार नैना,,कब बनेंगे तुम्हारे पकौड़े ,,भई,इतनी अच्छी बारिश हो रही,ऐसी बारिश ही पकौड़े का जायका बढ़ाती है” नैना के पति राकेश ने कहा.
            “सुना विमला महारानी तूने, तेरे कारण ही पकौड़े बनाने में देरी है रही है चल जल्दी से कढ़ाही साफ कर “नैना ने आंखें मटकाते हुए कहा.  कढ़ाही घिसते हुए विमला का मन कह रहा था “हाँ भई सबके अपने अपने भाग्य हैं,,कहाँ ये बारिश हम जैसों की परेशानी बढ़ाती है और आप जैसों के पकौड़े का जायका.
— अमृता राजेन्द्र प्रसाद

अमृता जोशी

जगदलपुर. छत्तीसगढ़