इंतकाल तक इंतज़ार
सफ़र जारी है, फिर भी हमसफ़र अब है नहीं।
उम्मीदें फ़िलहाल हैं, जो पूरी हो ही नहीं सकीं।
आसमान में तारे हैं, पर चाँद बिन तम जाता नहीं।
वैसे तेरे बिन दिल जो है, वह भीड़ में भी भरता नहीं।।
फूल है, भौंरा भी है पर रस यों ही सूख जाता है।
प्यासी है, पानी भी है पर जल यों ही सड़ जाता है।
प्यार है, आशिक़ भी है पर इश्क़ यों ही खो जाता है।
हम भी हैं औ’ तू भी है पर वक़्त यों ही गुज़र जाता है।।
जन्म मेरा क्यों हुआ, जो तेरे बिना जीना पड़े।
इश्क़ तुझसे ही क्यों हुआ, जिसे पाने में तड़पना पड़े।
रब से इक ही विनती है, जिसे पूरी करना ही पड़े।
इंतकाल तक इंतज़ार में ज़िंदगी मुझे जीना पड़े।।
— कलणि वि. पनागॉड