आना चाहती हो मगर…
ये बात तुम नही तुम्हारे नैन कहते हैं
मुुझसे मिलने को बड़े बेचैन रहते हैं।
आना तो चाहती हो मगर आओ कैसे?
कसमकस में तुम्हारे दिन-रैन रहते हैं।
उठवा लेने की धमकी देती हो मुझको
जब कि मेरे बंगले पे गनमैन रहते हैं।
‘निर्मल’ पावन गंगा ही ना समझ मुझे
हम कभी ‘गोवा’,कभी ‘उज्जैन’ रहते हैं।
मेरी शख्सियत का अंदाजा न लगा तू
तेरे मुहल्ले में मेरे ‘जबरा फैन’ रहते हैं।
— आशीष तिवारी निर्मल