गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

इस बार भी तो काटे गए आम बहुत हैं
हां, अपने लिए खाने को, इल्ज़ाम बहुत हैं

हमने ये कब कहा हमारा नाम बहुत है
बोला तो बोला इतना कि बदनाम बहुत हैं

वो काम के ही लोग हमें क्यों नहीं लगते!
जो कहते रहते हैं कि उनपे काम बहुत हैं

हम कहने में शरमाते हैं हम हैं बहुत ग़रीब
‘शो’ में जो मुफ़लिसी है उसके दाम बहुत हैं

सचको कहें अक्खड़ कि चापलूसी को विनम्र
कैसे कहें कि कहने पे इल्ज़ाम बहुत हैं

प्यासा हूं मैं कि ज़िंदगी ही मेरी प्यास है
दुनिया के पास भी तो ख़ाली जाम बहुत हैं

ये कैसे हुए, कब हुए, मैंने नहीं देखा
दुनिया पे यूं तो तो लड़ने को कुछ नाम, बहुत हैं

दानाईयों की दिलकशी पे लोग हैं फ़िदा
दीदा-दिलेरी जब तलक है काम बहुत हैं

— संजय ग्रोवर

संजय ग्रोवर

शिक्षा-बी. कॉम. संप्रति-स्वतंत्र लेखन, बहुत-से छोटे-बड़े पत्र-पत्रिकाओं और वेबसाइटस् पर ग़ज़लें, व्यंग्य एवं अन्य रचनाएं प्रकाशित, गूगल प्ले व अमेज़ॉन पर कई क़िताबें प्रकाशित फ़ैशन-डिज़ाइनिंग व विज़िटिंग कार्ड डिज़ाइनिंग में भी रुचि, रुचियाँ- पढ़ना, संगीत सुनना (लाइट एवं क्लासिकल) प्रकाशनः जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा, दै.हिन्दुस्तान, अमर-उजाला, दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी, दैनिक जागरण, जेवीजी टाइम्स, दैनिक आज, राजस्थान-पत्रिका, अक्षर-भारत, हंस, कादम्बिनी, अन्यथा, मुक्ता, चंपक, बालहंस, कथादेश, सण्डे मेल वार्षिकी, समयांतर, अक्षरा आदि कई छोटे-बडे़ पत्र-पत्रिकाओं व (अनुभूति, अभिव्यक्ति, वेबदुनिया, शब्दांजलि, कलायन, साहित्यकुंज, रचनाकार, हिन्दी-नेस्ट, देशकाल, मोहल्लालाइव आदि) वेबसाइटस्, फ़ीचर एजेंसिंयों एवं आकाशवाणी/दूरदर्शन पर व्यंग्य-लेख, ग़ज़लें, कविताएँ, बालगीत, कार्टून व नारी-मुक्ति पर लेख प्रकाशित/प्रसारित। गजल-संग्रहः 'खुदाओं के शहर में आदमी', एवं व्यंग्य-संग्रह 'मरा हुआ लेखक सवा लाख का' प्रकाशित। विशेषः तकरीबन १५-१६ की आयु में हस्तलिखित सचित्र बाल पत्रिका 'निर्माण' का संपादन व चित्रांकन। चिट्ठा- संवादघर www.samwaadghar.blogspot.com पताः 147-ए (जीटीबी ऐंक्लेव के गेट नं 3 के ठीक सामने), पॉकेट-ए, दिलशाद गार्डन, दिल्ली-110095 मोबाइल: 8585913486, 8178044238 ईमेल: [email protected]