कविता

हजारों मील तक उड़ने की चाहत

सफर है मोड़ है कुछ मंजिलें अन्जानी हैं,
भागते दौड़ते जीवन में कुछ राहें बेगानी हैं।
सम्भल कर लाख चलना हो एक दहलीज से लगकर,
मगर क्यूं आ ही जाती हैं जो बातें बस बेगानी हैं।
ना कोई आरजू हो ना ये ख्वाब रंगीले,
अगर दम गम पर जो निकले तमाशा बन ही जाती हैं।
हजारों बात हैं ऐसी दफन, है जो अभी दिल में ,
कराह एक जो निकले तो शामत आ ही जाती है।
जिगर से अश्क के मोती जो फूट कर निकले,
ना हो गर साथ अपनों का बगावत आ ही जाती है ।
परिन्दों के पर जो कतरे ,हो गर घात में दुश्मन,
हजारों मील तक उड़ने की चाहत आ ही जाती है ।
— वन्दना श्रीवास्तव

वन्दना श्रीवास्तव

शिक्षिका व कवयित्री, जौनपुर-उत्तर प्रदेश M- 9161225525