लघुकथा – अवार्ड
तेज प्रताप जी सुबह -सुबह तैयार होकर कहीं जाने वाले थे । जरूरी सामान की पैकिंग कर रहे थे, कि अचानक उन्हें चाय की तलब लगी । उन्होंने अपने नौकर तेरह वर्षीय छोटू को आवाज दी ।
‘अरे ओ छोटू ! गाड़ी बाद में धोना पहले दो कप चाय बना ले । एक कप मुझे दे जाना और दूसरा मैम के कमरे में पहुंचा देना ।’
छोटू साहब का आदेश पाकर चाय बनाने रसोई घर में चला गया । दस-पंद्रह मिनट में चाय का कप ट्रे में सजाकर साहब की सेवा में हाजिर हो गया ।
साहब ने जैसे ही पहला घूंट मारा और पूरा कप छोटू में दे मारा, ‘साले तुझे दो साल हो गईं रोटियां तोड़ते हुए और तू अभी चाय तक बनाना नहीं सीखा । इतनी मीठी चाय पिलाकर मुझे मारेगा क्या ?’
छोटू अपने साहब का गुस्सा देख घिघियाने लगा । तभी अंदर से तेज प्रताप की पत्नी आंखें मलते हुए बाहर आ गई, ‘क्या बात है ? आज सुबह-सुबह क्यों गरम हो रहे हो और कहां जाने की तैयारी हो रही है ।’
तेज प्रताप का गुस्सा अब कुछ कम हो गया और छोटू को पुनः फटकारते हुए बोले, ‘अब जा… गाड़ी साफ कर, यहां खड़ा -खड़ा क्या मेरा मुंह देख रहा है ।’
छोटू सिर झुकाए चला गया ।
तेज प्रताप की पत्नी ने पुनः सवाल किया, ‘क्यों डांट रहे थे उसे । चाय में ज्यादा चीनी डालने के लिए कल मैंने ही बोला था उसे । कल उसने मुझे फीकी चाय दी थी । वैसे आज कहां जाने की तैयारी जोर -शोर से चल रही है ।’
‘अरे, मैडम आपको नहीं पता ? मुझे आज अवार्ड मिलेगा । मैंने बाल अधिकारों को लेकर जो शोध किया है व बाल विकास के लिए इतने बड़े-बड़े कार्य किए हैं । उससे सरकार प्रभावित हुई है ।’
उसकी पत्नी ने मुस्कुराते हुए बधाइयां दीं और तेजप्रताप अवार्ड प्राप्ति के लिए निकल पड़े ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा