क्यों करते है पितरों की पूजा? ?
जब पितृ पक्ष आते है तो लोग गुजरे हुए रिश्तों को मनाने, या अपनी गलती सुधारने के किए कितनी कितनी पूजा पाठ करते है। क्यों ? जब बो जीवित होते हैं, तो कोई अपने रिश्तों को सम्मान नहीं देते । क्या है ये हमारी संस्कृति । क्यों ये ढकोसलो को अपनाते हैं। क्यों मरे हुए रिश्तों को जीवित करना चहाते हैं। किस बात का डर सताता है जो अपने कर्म को पुनः सुधारना चहाते हैं।
क्यों नहीं उनकी आत्मा को सुकून लेने देते मरने के बाद भी ।जो वो खुशी से रहे सकें जहाँ भी हैं। जीते जी पितरों की परवाह नहीं करते ,उनके दुःख में शामिल नहीं होते ।समझते है वो बोझ हैं उनपर,वो अपनी आजादी माँगते हैं। हरपल ,मन में कब इन रिश्तों से छुटकारा मिलेगा ।जब छूट जाते हैं। वो रिश्ते तब अहसास होता है। कि रिश्ते क्या होते हैं। जब जीते जी रिश्तों की कीमत नहीं तो मरने के बाद ये पूजा क्यों । जब रिश्ते जीवित होते हैं। तो उनके मरने का इन्तजार, जब रिश्ते मर जाते है तो जीवित करने की सोचते है।
हमारे पढ़े लिखे सभ्य समाज में ये रुढिबादी स्संकृति क्यों । इससे आज भी यही ज़ाहिर होता है कि पुरानी परम्पराओं से आज भी बाहर नही निकल पा रहे हैं। इस सोच के अनुसार कैसे बदलेगी नई पीड़ी? कैसे होगा नई स्संकृति का आगमन । अगर इसी तरह दोहराते रहेंगे। रीति रिवाजों को ।कैसे एक माँ जन्म देपाएगी अपने बच्चे की नई सोच के साथ। कर्म ही पूजा है। पूजा ही कर्म है।
— शिखा सिंह