जुगुनू
रात कमरे में जुगुनू
अंधेरे को चीरता हुआ एक सुनहरा रंग
जिसकी चमक
दियों की रौशनी फीकी कर रही थी
मन का सवाल
गर कमरा जगमागा सकता है
एक जुगुनू की चमक से
जो खुद की है
हम क्यों नहीं
मगर क ई जुगुनू आग नहीं लगा सकते थे
न कमरे में न जंगल में
उनकी रौशनी रास्ता दिखाने की थी
आग लगाने की नहीं ।
— शिखा सिंह