कविता

जुगुनू

रात  कमरे में जुगुनू
अंधेरे को चीरता हुआ एक सुनहरा रंग
जिसकी चमक
दियों की रौशनी फीकी कर रही थी
मन का सवाल
गर कमरा जगमागा सकता है
एक जुगुनू की चमक से
जो खुद की है
 हम क्यों नहीं
मगर क ई जुगुनू आग नहीं लगा सकते थे
न कमरे में न जंगल में
उनकी रौशनी रास्ता दिखाने की थी
आग लगाने की नहीं ।
— शिखा सिंह

शिखा सिंह

जन्मस्थल - कायमगंज स्नातकोत्तर- के.एन.कालेज कासगंज. प्रकाशन- विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में आलेख एवं कविताएँ प्रकाशित जैसे - लखनऊ से, उत्कर्ष, लखनऊ से रेवान्त पत्रिका ,जनसंदेश टाईम्सअखबार,अग्रधारा पत्रिका, अनुराग ,अनवरत, कविता संग्रह, भोजपुरी पंचायत, लोक चिंतक कवि हम - तुम कविता संग्रह और अन्य पत्रिकाओं में भी प्रकाशित सृजन पोर्टल दिल्दी बुलेटिन पोर्टल अन्य !! सम्पर्क-जे .एन.वी.रोड़ फतेहगढ़ फर्रुखाबाद (उ प्र,) पिन कोड- 209601 e-mail [email protected]