बिना किये फिर क्या होगा
तुम कहते हो ये करने से, भला आज क्या होगा,
तुम्हीं कहो बिना किये फिर, आगे और क्या होगा?
बिन बनाये चाय न बनता, बैठे-बैठे क्या होगा,
रख हाथ पर हाथ बैठा रहो, रोने से फिर क्या होगा?
जीवन को तुम खेल न समझो, करने से ही सब होगा,
आज किये तो जल्दी होगा, कल किये तो विलंब होगा।
अजी आज लगायेंगे पौधा, तभी तो कल वो फल देगा,
आज को केवल देखोगे तो, बोलो कल फिर क्या होगा?
जो संघर्ष राह पर आये बिना, हारोगे तो क्या होगा,
दुश्मन की गर्जन से काँप गए, बोलो फिर क्या होगा?
ये जीवन एक लड़ाई है, न समझोगे फिर क्या होगा,
नैनों से नीर बहाने से, घर बैठकर बोलो क्या होगा?
चारो ओर अंधेरा है तो, किसी को सूरज तो बनना होगा,
भटक रहे हैं दुनिया वाले तो, सही राह दिखाना ही होगा।
जन्म लिए इस धरती पर तो, फर्ज अदा करना होगा,
इस धरती पर भेदभाव का, अन्त हमें करना ही होगा।
जीवन है लड़ना होगा, चुनौती स्वीकार करना होगा,
सबकी खुशियाली खातिर, आज हमें सोचना होगा।
तुम कहते हो ये करने से, भला आज क्या होगा,
तुम्हीं कहो बिना किये फिर, आगे और क्या होगा?
— अमरेन्द्र