ग़ज़ल
इश्क़ में अब बग़ावत नहीं चाहिए
अब हमें तो शिकायत नहीं चाहिए
बस हमारा रहे साथ यूॅं ही बना
फिर मुझे ये इमारत नहीं चाहिए
साथ फिर से मिले हैं यहाॅं आज हम
क्यों भरोसा सलामत नहीं चाहिए
बात कोई भी’ हो हम रहें साथ ही
बीच में अब क़यामत नहीं चाहिए
अब तुझे यह ‘शिवा’ मज़हबी ना करे
क्योंकि इसको मसाफ़त नहीं चाहिए
— अभिषेक श्रीवास्तव “शिवा”