मुर्दों से मैं बात न करता
- मुर्दों से मैं बात न करता
मुर्दों से मैं बात न करता,
मैं बोल रहा जो जिन्दा है।
परिवर्तन की इस मुहिम में,
जो फर्ज निभाना जानता है।
जिन्दा ही सफर तय करता है,
अजी मुर्दा तो बस महकता है।
अथक सफर जो तय करता है,
बस वही मंजिल को पाता है।
धिक्कार है उसके जीवन पर,
जो अत्याचार को सहता है।
जो मूक नहीं पर मूक बनकर,
हर जुल्म के आगे झुकता है।
क्रान्ति की सफर कठिन सही,
पर वीर उसी पर चलता है।
देश देखो,विदेश को देखो,
वह स्वाभिमान से जीता है।
अजी मुर्दों का है कहाँ सफर,
जिधर फेंको वह रहता है।
कौआ-कुत्ता नोच-नोचकर,
उसका बोटी-बोटी खाता है।
जो जिन्दा है इस धरती पर,
वही भला-बुरा समझता है।
हर अन्याय के विरुद्ध में वो,
अपना प्रतिकार दिखाता है।
अमरेन्द्र
पचरुखिया,फतुहा,पटना,बिहार।
(स्वरचित एवं मौलिक)