लापता शिक्षक
एक शख़्स को देखते ही यशवंत को अपना हाई स्कूल स्टडी लेवल याद गया। मीडिल स्कूल की अपेक्षा हाई स्कूल में कितना इम्प्रूवमेंट आया था उसमें सब जानते थे। आज यशवंत स्वयं पी. डब्लू. डी. विभाग में एक अधिकारी पद पर हैं। उनका मानना है कि क्या पकड़ है उस शख्स की हिंदी और संस्कृत में। कला, साहित्य, व खेल-कूद में एकदम एक्सपर्ट। बाद में यशवंत को अवगत भी हो चुका था कि वे शख्स दोनों लैंग्वेज हिंदी व संस्कृत में पोस्ट ग्रेजुएट हैं।
आज यशवंत ने उन्हें यहाँ देखा। उनके करीब गया। नमस्ते किया। पाँव भी छू लिया। यशवंत के कंधे पर हाथ रखते उस शख्स ने पूछा- “कौन हो जी ? मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। पर चेहरा तो पहचाना सा लग ही रहा है।” उस शख्स ने गिलास और मग्गे को नीचे जमीन पर रखा।
“सर ! मैं यशवंत हूँ। यशवंत कुमार भंडारी। पचेड़ा मेरा गाँव है सर। आप श्री चौहान सर जी हैं। मैंने पहचान लिया आपको। आप मुझे प्रियदर्शिनी पब्लिक हाई स्कूल डौंडी में पढ़ाये हैं। याद कीजिए न सर जी…., मैं वही यशवंत हूँ, जिसे हिंदी में छुट्टी के लिए आवेदन पत्र लिखने नहीं आता था; और आपने ही सिखाया था। संस्कृत में अस्मद्-युष्मद् की कारक रचना बड़े सुंदर तरीके से याद करवायी थी।” यशवंत के स्वर में बड़ी गम्भीरता थी।
“अच्छा.. अच्छा…! पचेड़ा वाले प्रेमलाल भंडारी जी के लड़के हो ! ठीक !” चौहान जी बोले।
“सर, आप यहाँ कैसे ?” यशवंत बमुश्किल बोल पाया।
चौहान जी मुस्कुराये। पब्लिक की ओर नजर डालते हुए बोले- “यशवंत, दरअसल क्या है, मैं प्राइवेट स्कूल में था। कोरोना काल का स्कूल पर जबरदस्त असर पड़ा; साथ ही राजनीति भी चल गयी; और फिर स्कूल बंद भी हो गया।”
“फिर सर…?” यशवंत बोला।
“फिर क्या है कि और कोई स्कूल मिला ही नहीं मुझे ? कुछ महीने तक इधर-उधर होता रहा। फिर यही काम मिला। खाली-पीली तो हूँ करके आ गया मैं भी। क्या करता; अब कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा न। यहाँ प्रधानमंत्री सड़क निर्माण योजना के तहत काम चल रहा है….।” चौहान जी आगे कुछ बोल ही रहे थे। तभी आवाज आयी- “ऐ सुमेरसिंग…! इही कोति पानी ला गा…पियास लागत हे…चला पानी पिया…।”
फिर चौहान जी एक बाल्टी पानी पकड़े। दो-तीन गिलास और एक मग्गा भी। “और अच्छा… चल रहा हूँ यशवंत; और मिलना न…” कहते हुए काम में लगे मजदूरों की ओर चल पड़े।
यशवंत कुमार भंडारी को आज यह दृश्य बड़ा हृदय विदारक लगा। उसे लग रहा था कि उसके एक आदर्श शिक्षक के हाथों में रजिस्टर, फाईल, पेन, चाक का स्थान गिलास, मग्गे, गुंडी और बाल्टी ने ले लिया है। ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा तो उनमें अब भी झलक रही है; पर सच, आज एक वो शिक्षक आदरणीय श्री सुमेर सिंह चौहान जी लापता हो चुके हैं; जिनकी आज नितांत आवश्यकता है।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”