नींबू महंगा – खटाई को समझना और समस्या सुलझाना मुश्किल
गन्ने के रस की दुकान में ग्राहक ने दुकानदार से कहा भाई जरा नीबू, अदरक,पुदीना भी गन्ने के साथ रखकर रस तैयार करना। दुकानदार ने कहा दस का गन्ने का रस का गिलास और उसमे दस का नीबू डालूंगा तो मुझे क्या बचेगा। बिना नीबू का मिलेगा। ग्राहक बोलै चलेगा भाई। तो जरा नींबूड़ा नींबूड़ा का गाना ही बजा दो। सोचना और समझाना वर्तमान में मुश्किल होता जा रहा। समझाने में बहस जन्म ले लेती है। अक्सर कई बार ऐसा हो जाता है की सामने वाला क्या सोच रहा है या फिर हम उसी अंदाज मे उसे देख रहे है मगर उसके बारे मे सोच नहीं रहे है। यानि ध्यान कही और है। ऐसे मे सामने वाला कोई नई बात सोच लेता है बात को पहले समझे बगैर दुसरो को कह देना भी एक नासमझी मानी जाएगी। एक वाक्या वो यूँ था – बाबूजी ने साहब के बंगले पर जाकर बाहर खड़े नौकर से पूछा साहब कहाँ है ?उसने कहा “गए” यानि उसका मतलब था की साहब मीटिंग में बाहर गए। बाबूजी ने ऑफिस में कह दिया की साहब गए इस तरह उड़ती – उड़ती खबर ने जोर पकड़ लिया। । खैर, कोई माला, सूखी तुलसी, टॉवेल आदि लेकर साहब के घर के सामने पेड़ की छाया में बैठ गए। घर पर रोने की आवाज भी नहीं आरही थी। सब ने खिड़की में से झाँक कर देखा। साहब के घर में कोई लेटा हुआ है और उस पर सफ़ेद चादर ढंकी हुई थी। सब घर के अंदर गए और साथ लाए फूलो को उनके ऊपर डाल दिया। वजन के कारण सोये हुए आदमी की आँखे खुल गई। मालूम हुआ की वो तो साहब के भाई थे जो उनसे मिलने बाहर गांव से रात को आये थे। सब लोग असमझ में थे की बाबूजी को नौकर ने बात समझे बगैर सही तरीके से नहीं की। इसमें बाबूजी का कसूर नहीं था ।कुछ दिनों बाद बाबूजी रिटायर होकर अपने गाँव चले गए। गाँव में उन्हें वहां के लोग नान्या अंकल कह कर पुकारते थे। गाँव मे रिवाज होता है की मेहमान यदि किसी के भी हो अपने लगते है। गाँव मे उन्हें अपने घर भी बुलाते है। वर्तमान में नींबू के भाव आसमान पर है। लोग महंगाई नही पा रहे वाकई ना समझ है। वो इसे मौसम की मार समझ रहे तो कई लोग महंगाई का अनुमान लगा रहे थे। ऐसे में एक वाक्या याद आता है कि- गर्मी की छुट्टियों मे मेहमान आए बुरा न लगे इसलिए सामने वाले अंकल जो की बाहर खड़े थे जिन्होंने ही घर का पता मेहमान के पूछने पर बताया था। पता बताने के हिसाब से और नेक इंसान होने केव्यंग्य नाते गर्मी के मौसम मे ठंडा पिलाने हेतु पप्पू को दौड़ा दिया कहा कि-“जा जल्दी से नान्या अंकल को बुला ला “। मेहमान कहाँ से आए की रोचकता समझने एवं आमंत्रण कि खबर पाकर वो इतना सम्मानित हुए जितना की कवि या शायर कविता/गजल पर दाद बतौर तालियाँ और वाह -वाह के सम्मान से जैसे नवाजा गया हो ठंडा पीने के लिए जैसे ही नान्या अंकल को मेहमानों के सामने भाभीजी ने निम्बू का शरबत दिया शरबत का गिलास होठों से लगाया तो नान्या अंकल को कुछ ज्यादा ही खट्टा लगा । सोचा शायद महंगाई के मारे शक्कर के भाव बढ गए हो इसलिए शक्कर ही कम डाली हो। दूसरा घूंट भरा तो फिर कहना ही पड़ा – भाभीजी इसमें आप शक़्कर डालना शायद भूल गई हो ।भाभीजी बोली -क्या करे भाई साहब इनको डायबिटीज है इस कारण शक्कर कम ही डालने की आदत सी हो गई है । बढ़ती महंगाई पर पर्दा डालने की कोशिश मृगतृष्णा सी लगती दिखाई देने लगी। नान्या अंकल ने कहा- भाई शरबत बहुत ही खट्टा है, पीने से मेरे दांतों को बहुत तकलीफ़ होती है। महंगे नीबू के कारण शक़्कर का भी बहुत अच्छा लग रहा था। जरा इमली को ही लिजिये, इमली का नाम सुनने पर या चूसने पर सामने वाले के मुँह मे भी पानी आ जाता है और जम्हाई लोगे तो तो सामने वाला भी मुह फाड़ने लग जाता है। कई लोग महत्वपूर्ण मीटिंगों मे आप को सोते या जम्हाई लेते मिल ही जायेंगे। ऐसा शरीर मे क्यों होता है ये मै नहीं जानता जो आप सोच रहे हो और ये भी नहीं जानता की नीबू अचानक महंगे क्यों हुए थे।
विदेशो में घूमे जाने के हजारो किस्से नान्या अंकल मेहमानों को बता रहे मगर मेहमानों ने कहा- अंकल अपने देश में घूमने लायक एक से बढ़कर एक जगह है, बस इस बात का वे बुरा मान गए और कहने लगे की मेरे “मन की बात” को कोई ठीक तरीके से समझते क्यूँ नहीं और वे उठ कर चल दिए। कई सालो बाद वही मेहमान फिर गाँव मे आये तो उन्होंने नान्या अंकल को देखा जो की ज्यादा बुढे हो गए थे लेकिन अपने विचारो पर थे अडिंग। उनकी नजरे भी कमजोर हो गई, किन्तु सामने वाले मेहमानों ने उन्हें पहचान ही लिया। वे एक दूसरे के कानो मे खुसर-पुसर कर कहने लगे यही तो है अंकल। उन्होंने सोचा की शायद उस समय हमसे ही कोई समझने की भूल हो गई हो क्षमा मांगने का और उनसे कहने और समझने का यही मौका है। सबने नान्या अंकल से माफी मांगी। नीबू जगह अब नान्या अंकल को छाछ पीने को दी। तब मन में एक ही ललक थी। नया अंकल को महंगे नीबू का शरबत देना था। तब उनके चेहरे पर ज्यादा ख़ुशी दिखती।
— संजय वर्मा “दॄष्टि”