कहानी

कशमकश और कब तक

वक्त कभी एक जैसा नहीं रहता. जरूरी नहीं जो आज हमारी जिंदगी में बहुत खास हो जिसके बिना हम एक दिन क्या कुछ घंटे भी नहीं बिता पाते हैं, एक वक्त ऐसा आए कि हमें उनसे मिलने की ना उतनी खुशी हो ना उनसे दूर होने का कोई खास मलाल हां मगर कसक तो दिल के किसी कोने में बनी ही रहती है, कसक सिर्फ खोने की ही नहीं हर उस बात जो वक्त के साथ दिलो-दिमाग से फिसलती गई रेत की तरह और जिंदगी में आया सैलाब सब कुछ बहा कर ले गया बचे तो सिर्फ कूड़े कंकड़ के कुछ छूटे निशान बात बस इतनी है यह भी नहीं कि भूल गई हूं, यह भी नहीं की याद आते हैं, पहले जो सबसे पहले आते थे, आज वह सब के बाद आते हैं l इंसान अपनी जिद और व्यवहार से जिसे चाहे अपना बना ले जिसे चाहे पराया कर दे l सब उसी के हाथ में ही होता है, अमायरा बंद आंखों से पुराने दिनों में खो गई जब वह कबीर के साथ बहुत खुश थी। वह कॉलेज की सबसे हसीन लड़की कहीं जाती थी, दिल की भी खूबसूरत काम में भी अच्छी हर किसी की ज़ुबान पर उसी के चर्चे होते थे। अमायरा को कबीर की मस्तियां उसका हाज़िर जवाब होना भाने लगा कबीर भी उसे चाहने लगा।वह कबीर जो हर शाम अमायरा से मिलने आता ढेरों बातें करता। रोज़ कुछ ना कुछ लेकर आता अमायरा खुशी से उसको अपनी हर अच्छी बुरी बात बताती उसे ऐसा लगने लगा कि कबीर के मिल जाने के बाद अब उसे किसी और की कोई जरूरत ही नहीं कहते हैं। मगर कहते हैं ना यक़ीन और भरोसा सिर्फ ऊपर वाले पर ही करना चाहिए किसी इंसान में वह ताक़त कहा कि वह हमारी हमेशा मदद कर सके।अमायरा में कोई कमी न थी वह दिल की गहराइयों से कबीर को चाहती थी। लेकिन जब हम किसी को ज़्यादा चाहने लगते हैं,तो उसको हमारी क़दर नहीं होती है। यही चीज़ यहां भी हुई अमायरा को जब कबीर की सबसे ज्यादा जरूरत थी तो वह उसका साथ छोड़ गया। अब अमायरा की जगह कबीर की जिंदगी में कोई दूसरा था। कई साल अमायरा अकेले घुलती रही दुखी रही दोनों के बीच खाई जैसी दूरियां थी। अगर यही हालात रहते तो अमायरा खुद को संभाल लेती पर दिक्कत जब और हुई जब अमायरा बहुत आगे निकल चुकी थी। मगर कबीर की कसक उसके दिलो दिमाग में घर कर चुकी थी। अमायरा को रविशा और आदिल जैसे दोस्तों ने संभाला था। हर कदम पर उसका साथ दिया , अमायरा अब फिर से कॉलेज की जान बन चुकी थी। इस बार कबीर कहीं नहीं था। अमायरा की कामयाबी के चर्चे दूर-दूर तक फैलने लगे। वह भी वक्त के साथ सब कुछ भूलने लगी थी। अमायरा फिर से थोड़ा बहुत खुश रहने लगी। पर जिंदगी में खुशियां जैसे ज्यादा देर तक दिखती ही नहीं हो अच्छे दिन जल्दी बीत जाते हैं बुरे वक्त जल्दी गुजर नहीं पाते इस बार कबीर की वापसी अमायरा की जिंदगी मे एक भूचाल ला कर रख दी कबीर फिर से अमायरा से मिलने आने लगा। पुरानी चाहत होने की वजह से अमायरा उसे अभी भी इग्नोर नहीं कर पाती। इस बार का कबीर वह कबीर नहीं था जिसे वह कभी चाहती थी। यह तो कोई सौदेबाजी था। हर बात पर झगड़ा, रोकना, टोकना उसकी गलतियां निकालना,अमायरा समझ नहीं पा रही थी, कि कबीर से कैसा रिश्ता रखें , कबीर उसी तरह का हक़ जताने लगा उसे दोस्त बनकर रहने की सलाह देता। वह ताने मारता। ना खुद सुकून से जीता उसे जीने देता दोनों परेशान रहने लगे। तभी पीछे से फोन की घंटी बजी अमायरा ने आंखें खोली तो देखा फैसल का फोन था। यह वही फैसल था। जो अमायरा को हर पल संभालता था फोन उठाकर अमायरा ज़ोर ज़ोर से रोने लगी फैसल समझ गया अमायरा कबीर की वजह से ही परेशान है। वह बोल कुछ नहीं पाई पर उसने अपने अंदर एक फैसला किया कि वह कबीर के कहने पर अपने किसी भी दोस्त का दिल नहीं दिखाएगी । कबीर उसको सबसे दूर करना चाहता था।वह सोचती रही कि क्या यह वही कबीर है जो मेरी आंखों में एक भी आंसू नहीं देख पाता था। जो मुझे आज दिन रात रुला रहा है। उसने फैसला लिया कि कबीर के लिए दिल में बसे उस प्यार को अब मारना ही होगा। प्यार मुझे कमज़ोर बना देगा, और अमायरा मज़बूत बनना चाहती थी। अमायरा आंसू पोंछ कर उठी और उसने कबीर का नंबर अपने फोन से डिलीट कर दिया जो वह पिछले कई सालों में ना कर पाई थी। आज हिम्मत जुटाई और दिखाया स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं गवारा ।अमायरा ने सब कुछ छोड़कर दूर चले जाने का फैसला लिया अपना कुछ जरूरी सामान उठाया और ट्रेन में बैठ कर कहीं दूर चली गई।वह भी नहीं जानती थी कि वह कहां जा रही है उसको वह पुराने सारे वादे याद आ रहे थे , जो उसके साथ कभी कबीर ने किए थे जिसे वह बहुत प्यार करती थी। जिसके ऊपर खुद से ज्यादा भरोसा करती थी। जिसके ऊपर आंख बंद करके विश्वास किया उसने वह अपने अनुसार चीजों को बदल कर दूसरी दिशा में ले जा रहा था।जो कल तक उसका था वह और किसी और का यही जीवन की हकीकत है। अमायरा ने अपनी जिंदगी फिर से शुरू की धीरे-धीरे वह कामयाब होने लगी समाज में उसकी पहचान बनने hलगी उसने अपनी मेहनत और जज्बे से अपना छोटा सा आशियां बनाया। समाज के लिए गरीबों के लिए अच्छे अच्छे काम करने लगी खुद पर भी ध्यान देने लगी अपनी पहचान और नाम के साथ अब वह आगे बढ़ती जा रही थी।

— आसिया फारूकी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र