सामाजिक

युवा अवस्था

आँखों में भविष्य की कल्पनायें, बाजुओं में नवीन रुधिर से भरी ऊर्जा मुटिठयों में काल के प्रवाह को रोक देने की क्षमता, तनी भृकुटि पर आक्रोश की खीचीं रेखाएं, होठों पर खेलती मोहक मुस्कान, मन में आकाश को छूने वाली तरंगे, अनुभव विहीन मस्तिष्क में विश्वास पूरित ऊहा, कुछ गुनगुनाहट, कुछ खिल खिलाहट, कुछ तरंग कुछ उमंग, कुछ मोहक सपने कुछ विद्वेष से भरी खीझ, इन्द्र धनुषी रंगों में खोयी डूबी कुछ कल्पनायें, कुछ दीवानगी भरे कदम, यदि इस सब को मिलाकर एक शब्द में कहा जाए तो वह है युवा अवस्था।
मादकता से पूरित अलमस्त जवानी,
युवा अवस्था जीवन का सबसे मूल्यवान क्षण है
‘‘शबनम की तरह खूबसूरत परन्तु तुहिन बिन्दू सा ही क्षणिक’’। युवा शरीर में नवीन उर्जा शक्ति का स्त्रोत इठलाता रहता है। उसमें सदा नूतन बिजलियां कौधती रहती है। इसीलिए युवा कदमों को रोक पाना या दिशा दे पाना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। युवाओं की फड़कती शक्ति को सही मार्ग पर लाकर ही देश के भवन की भित्ति को सुदृढ़ किया जा सकता है। युवा स्वर जहाँ मादक और मोहक होता है, वही वह विध्वसंक ओर विनाशक भी होता है। युवा जहाँ अनुसरण करने वाला दीवाना होता है। वही वह परम्पराओ और मर्यादाओ का तोडने वाला विद्रोही भी होता है। आज का युवक पथ भ्रष्ट, आत्म ग्लानि से खीझता, तोड़-फोड़ और विध्वंस से दहकता, नशों की लतों मे डूबता, जीवन की समस्यओं से भागता, जमाने भर से शिकायत करता, कुण्ठाओं से भरा, अनुशासन ओर शीलव्रत को भंग करता नजर आ रहा है। आज वह एक दो राहें पर मूकदर्शक बना खड़ा है। जहाँ उसे राह नजर नहीं आ रही है। अश्लीलता की आग में उसका मन और मस्तिष्क झुलस रहा है। तरह तरह के दुर्व्यसनों से उसका नैतिक पतन हुआ जा रहा है। आज आवश्यकता है उसे नैतिकता, संयम, अनुशासन और कर्तव्य बोध कराने की । नव भारत के निर्माण करने के लिए उन चरित्रवान बलिदानी वीरों की आवश्यकता है। जो अपनी प्यारी मातृभूमि के लिए सहर्ष कह सकें।
‘‘वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम्’’ अर्थात् हम तुझ पर बलिदान करने वाले हो, आन, बान, शान के प्रतीक चरित्र के तप से प्रदीप्त श्रम की बँुदो से अभिषिक्त युवाओं से ही इस राष्ट्र का उत्थान हो सकता है। हम विस्मृति के गर्त से अपनी महान संस्कृति को पुर्नजीवित करें। हम अपने ज्ञानी विज्ञानी ऋषि-मुनियों की संस्कृति को जिसमें भौतिक सुख के साथ साथ आध्यात्मिक आनन्द की संयुक्त धारा है। उस भागीरथी को पुनः प्रवाहित करे। आज भ्रष्टाचार शोषण, अन्याय, अज्ञान, अन्ध परम्परा से दुराचार अभाव का दानव फिर जाग उठा है। उससे इस देश को बचाना होगा। आज का युवा तन ढापने से ज्यादा ऊपरी दिखावे पर खर्च करता है। वह भौतिकवादी बनकर ऊपरी दिखावे को अत्यधिक महत्व देने लगा है। और उसकी प्राप्ति के लिए अनुचित ढंग से धन प्राप्त करता है। जिससे वह गलत मार्ग का राही बन जाता है। विलासिता और मादकता का जीवन यापन करने के लिए वह किसी भी हद को पार कर सकता है। लेकिन यह अनुचित कार्य युवाओं को नही करना चाहिए। अपितु मादकता का जीवन त्याग कर हम कठोर युवा बनने का प्रयास करें। जैसा कहा गया है।
पत्थर सी हो मांसपेशिया लोह से मुजदण्ड अभय।
नशनश में हो आग सी तभी जवानी पाती जय।।
स्वामी रामतीर्थ जी ने कहा था-
‘‘मेरे भारत के होनहार युवकों! भारत का भविष्य ही तुम्हारा भविष्य है और इसके निर्माण का दायित्व तुम्हारे कन्धों पर है। उठों जागो! अपने देशवासियों को जगाओं। सूर्याेदय से पूर्व ही अपने कर्तव्य का निर्धारण कर लो, अपने कर्मपथ पर अग्रसर हो जाओ। एक क्षण भी वृथा मत गंवाओं। यदि तुम आलस्य या प्रमाद में डूबे रहे तो सूर्य पश्चिम को चला जायेगा तब तुम्हारे लिए कुछ भी न हो सकेगा।’’
उठों! अतीत को वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुरूप ढालो और साहस पूर्वक अपने पवित्र संकल्प से शक्तिशाली वर्तमान को उज्ज्वल भविष्य की दौड़ में नियोजित करों। मेरे देश के भावी कर्णधारों आगे बढ़ो। पुरानी अकर्मण्यता पर विजय प्राप्त करों, जहाँ परिवर्तन की आवश्यकता है। वहाँ परिवर्तन करों और जहां गति की आवश्यकता है, वहाँ गति लाओं। निर्बाध गति से लक्ष्य की ओर बढ़ते जाओ जब तक सफलता तुम्हारे चरण न चूम ले, ओर विजयश्री आपके गले का हार न बन जाये। तब तक रुकने का नाम न लो। हमें अपने विगत के महान आदर्शों के अनुसार अपने जीवन को ढालना होगा। हमें वर्तमान समय के कायरता मुक्त विचारों को त्याग कर मातृभूमि के हित में राष्ट्रीय गौरव से ओत प्रोत आत्म विश्वास ओर समर्पण के भव्य भावों को अपने श्वास प्रश्वास में बसाये हुए सच्चे जीवन्त युवक बनना होगा।
हमारे आदर्श है, वे पूर्व पीढ़ी के लोग जिन्होंने देश की आजादी व समाज सुधार एवं देश को आगे बढ़ाने में योगदान दिया, वे भी युवक थे। जिन्होने फांसी के फन्दों को देखकर मस्ती भरे गीत गायें थे। जिन्होने राष्ट्र यज्ञ में अपने तन की समिधा की आहुति दी, उन्हांेने आजादी की पुरवा हवा हमारे लिए बहायी जिसमें हम सुखपूर्वक सांस ले सकें। मित्रों आज फिर देश की एकता और अखण्डता पर चोट पड़ रही है। आज फिर भारत माता के शरीर पर घाव उकेरे जा रहे है। उन घावों को देश के नवयुवक मरहम बनकर भरें। उसके लिए हमें उन महापुरूषों को अपना आदर्श बनाना होगा, जो देश के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर गये। वर्तमान में ऐसे नवयुवकों की आवश्यकता है जो देश से साम्प्रदायिकता की आग को मिटा सके। हमसे नाराज भाईयों को हृदय से लगाकर मुख्य धारा में जोड़ सके। लेकिन कुछ स्वार्थी तत्व इस पवित्र कार्य में बाधा उत्पन्न करने के लिए तैयार खड़े है। परन्तु युवा शक्ति के सामने उनकी गंदी मंशा कभी पूरी नही हो सकेगी। देश की उन्नति में युवा शक्ति का होना बहुत ही जरूरी है। युवाओं को अपना लक्ष्य निर्धारित कर सफलता की सीढ़िया चढ़ने के लिए दूर दृष्टि रखकर दृढ संकल्प करना चाहिए। वह कठोर परिश्रम के साथ पूर्ण अनुशासन अपना कर चरित्र से सुसज्जित होकर ही आदर्श युवक कहला सकता है। स्वामी विवेकानन्द जी न कहा था कि-
‘‘युवा उम्र से नही होता अपितु मन से होता है उसके अन्दर कार्य करने की क्षमता कितनी है उससे युवा शक्ति का परिचय होता है’’ लेकिन वर्तमान में युवा शक्ति गलत संगति में पड़कर अपनी जवानी को नष्ट कर रही है। उसे सही मार्ग पर लगाकर उसका सदुपयोग करना चाहिए। अपने प्राचीन सद्ग्रंथो -साधुमहात्माओं व समाज सुधारको से प्रेरणा ले। सच्चे अर्थों में युवा कहलाने के अधिकारी बनें। देश की उन्नत में सहायक बन कर भारत को फिर से विश्व गुरु का दर्जा दिलाये जिससे पूरा विश्व एक स्वर में कह सकें।
कहेगा फिर से विश्व एक स्वर में सारा।
वही वृद्धगुरु भारत देश है हमारा।।
— आचार्य सोमेन्द्र श्री

सोमेन्द्र सिंह

सोमेन्द्र सिंह " रिसर्च स्काॅलर " दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली शास्त्री सदन ग्राम नित्यानन्दपुर, पोस्ट शाहजहांपुर, जिला मेरठ (उ.प्र.) मो : 9410816724 ईमेल : [email protected]