धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

जीवन सार्थक बना लो

अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम् ।
शेषा: स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमत: परम्  ।।
अर्थात् – लोग (जीव) प्रतिदिन मृत्यु के मुख में जा रहे हैं, परंतु बचे हुए लोग अमर रहना चाहते हैं । वे सोचते हैं कि सारा संसार मर जाएगा लेकिन वे बचे रहेंगे । इससे बड़ा आश्चर्य क्या होगा ? हम बेखबर होकर मृत्यु के नजदीक पहुंच जाते हैं, तब पद, पैसा, शक्ति, राजमहल, सिंहासन, अपने आदि कुछ सहायता नहीं कर पाते । सब को छोड़कर इस संसार से हमें जाना ही पड़ता है ।
 मृत्यु अटल सत्य है । राम-कृष्ण ईश्वर का अवतार होते हुए मृत्यु से नहीं बच पाये तो साधारण लोगों की क्या औकात । योनि से जन्मा अर्थात् हर देहधारी एक दिन मृत्यु का स्वाद अवश्य चखता है । हमारी उम्र बीत रही है और हम समझते हैं कि हम बड़े हो रहे हैं, सच तो यह है कि हम रोज- रोज धीमे- धीमे मृत्यु के नजदीक जा रहे हैं । वह दिन दूर नहीं जब सप्ताह के सातों दिनों में से कोई एक दिन हमारा अंतिम दिन होगा । अड़ोसी -पड़ोसी व सगे -संबंधियों में समाचार फैल जाएगा हमारी मौत का, उस दिन सब छूट जाएगा । लाखों, करोड़ों, अरबों, खरबों का सब व्यापार चौपट हो जाएगा । हमारा यह सुंदर शरीर राख का ढेर हो जाएगा या जमीन में दबकर सड़ जाएगा, कीड़े खा जायेंगे, जानवरों के मुंह लग गया तो विष्ठा बन जायेगा । और हम हैं कि उस दिन को भूलकर संसार का हर बुरा काम करने को हमेशा तत्पर रहते हैं ।
 इस जीवन में किसी का अगर भला कर सकते हो तो अवश्य करो । बुरा तो सपने में भी मत करना किसी का । लोग धार्मिक आडंबर तो बहुत करते हैं, पर कुकर्म करना नहीं छोड़ते । पाप से दौलत का अंबार लगा लेते हैं, फिर धर्म के नाम पर दान, कथा, भंडारे न जाने क्या-क्या करते हैं । ऐसा करने से उन्हें रत्तीभर भी पुण्य प्राप्त नहीं होता ।
 हमने अक्सर भौतिकवादी लोगों को देखा है कि वे शवयात्रा, शोकसभा में भी व्यापार, मौजमस्ती भरी अश्लील बातें करते रहते हैं । लोगों के सामने चिता जलती है और अनजान बने रहते हैं अपने परिणाम से ।
अच्छे कर्म, प्रभु का भजन ही मुक्ति का सच्चा- सरल द्वार है । किसी के साथ भी एक पैसे की हेराफेरी मत करो । व्यभिचार, अत्याचार, अनाचार सबसे दूर रहो । धन के अभिमान में अंधे मत बनो । धन से तुम भौतिक वस्तुएं खरीद सकते हो, अंतर्मन का आनंद नहीं । पापों की गठरी अपने सिर पर लिए हमेशा घूमते रहते हो फिर तीर्थयात्राओं  से कोई लाभ नहीं ।
सावधान ! मौत कभी भी, कहीं भी आ सकती है । उसे टाला नहीं जा सकता, सिर्फ अच्छे कर्मों से सुधारा जा सकता है । छोड़ दो चालाकी, बुद्धि, वर्ण, जाति, धन, परिवार, पद, बल, सुंदरता का मद । सीधे- सरल, ईमानदार बनकर ईश्वरीय मार्ग को अपनाओ और जीवन सार्थक बना लो ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111