प्रतिक्रिया – बोद्ध धर्म
1 यह कहना गलत है कि बोद्ध धर्म सनातन धर्म से निकला है। बल्कि सच्चाई यह है कि जब महात्मा बुद्ध ने सनातन धर्म के नाम पर उस समय के ब्राहम्णो द्वारा अपनाई अमानविय हरकतों को देखा तो उन्होने सनातन धर्म से अलग एक अलग धार्मिक विचारधारा को जन्म दिया जो कि सनातन धर्म से अलग थी, उस में ईष्वर का कोई स्थान नहीं था।
2 महात्मा बुद्ध ने उस समय के ब्राहम्णों के व्यवहार को देखकर ही यह कह दिया कि वह वेदों को नहीं मानते, कारण जब बुद्ध ने पूछा कि वे ऐसे अमानविय काम क्यों करते हैं तो उन्होने कहा ऐसा वेदों में लिखा है। जब कि आवष्यकता यह थी कि बुद्ध स्वयं वेदों को पढ़ कर अपनी राय बनाते।
3 संसार में जहां कहीं भी बोद्व धर्म माना जा रहा है वह महात्मा बुद्ध द्वारा प्रचारित धार्मिक विचारधारा से अलग है। मैने लंका में बुद्व भिक्षुओं को बुद्ध बिहारों में मांस खाते देखा तो मैने कहा कि बुद्ध तो मांस खाने के विरूद्ध थे तो उनका जवाब था कि बुद्व ने पषुओं को मारने से इंकार किया है परन्तु दूसरे व्यक्ति द्वारा मारे गए पषु का मांस को खाने में कोई हर्ज नहीं।
4 कम्बोदिया, मयनामार, वियतनाम व थाईलैंड में मैेन बोद्ध धर्म का अलग स्वरूप देखा। उसका भारत में माने जा रहे बोद्ध धर्म से कोई मेल नहीं । मयनामार के बुद्ध भिक्षु तो बहुत खुखार होते है। उन्होने तो मुसलमानों का जीना हराम कर दिया है और मुसलमान भागने पर मजबूर है।
5 भारत में बुद्ध धर्म का प्रचार अलग अलग ढंग से किया जाता है। जो व्यक्ति तो हिन्दु धर्म की ज्यादतियों से तंग आकर बुद्ध धर्म को अपनाते हैं उनको सनातन धर्म के प्रति घृणा का चड़नामत पिला कर बोद्ध धर्म में दि़ाा दी जाती है। जो लोग उच्च श्रेणी में आते हैं उनको बोद्ध, के बुणों का वखान किया जाता हेैं । यह बताया जाता कि बुद्ध धर्म सनातन धर्म के कर्मकाण्डों से मुक्त है। स्वभााविक है लोगों को कर्मकाण्उ मुक्त विचारधरा, जिस में कुछ मानविय विशयों तक ही बात रहती है, अच्छी लगता हेै परन्तु मैने कम्बोदिया व वर्मा में देखा कि बुद्ध धर्म के कर्मकाण्ड तो हिन्दु र्धर्म के कर्मकाण्डो से कहीं बडे व खर्चीले हेैं मैने वहां एक दाह संसकार देखा, उस में जो खाना दिया गया था वैसा तो हमारी षादियों में भी नहीं दिया जाता। खास बात यह है कि खाना षमषन भूमी में ही दिया जाता है। एक तरफ मुर्दा जल रहा होता है और कुछ ही दूरी पर यह खाने की पार्टी चल रही होती है।
क्हने का अर्थ है कि धर्म का सही स्वरूव वहुत कम लोग मानते हैं। अधिक तो कर्मकाण्ड में ही लग जाते है। चाहे कोई भी धर्म हो। धर्म तो लोगों को भ्रमित कर पैसा बनाने व षासन करने का एक ढंग बन गया है। जो ज्ञानी है वह समझ जाता है वाकी इस में फसे रहते हेै। सत्य तो सदैव ढका हुआ है उस तक पहुचने के लिए तप, त्याग व अभ्यास द्वारा उस पर जमी तह को हटाना पड़ता है । बहुत कम को ठीक गुरू व रास्ता मिलता है।
धर्म तो अमृत है परन्तु हमारे धर्म के ठेकेदार अपने स्वार्थ के लिए अमृत को आम जनता को विषैला नषा डाल कर पिलाते है। चाहे बुद्ध है या हिन्दु या फिर इसलाम। कितने व्यक्ति री रामचन्द्र के गुणों को धारण करते है परन्तु आयोघ्या सरू नदि में दीपों की संख्या लाखों से उपर हो गई है।
— Bhartendu Sood