बालगीत – पंछी बन जाएँ
चलो कुछ कर जाएँ,
हम पंछी बन जाएँ।
नील गगन उड़ते हुए।
चींव-चाँव करते हुए।
नदी पर्वत देख आएँ।
हम पंछी बन जाएँ।
पड़े हुए दानों को।
पके हुए फलों को।
मिल-बाँट कर खाएँ।
हम पंछी बन जाएँ।
बना कर स्वयं घोंसला।
मन में रख हौसला।
अच्छे से रह पाएँ।
हम पंछी बन जाएँ।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”