आँवला नवमी के दिन सुबह मेरा पुत्र घूमने गया।रास्ते मे काबर पक्षी गिरा हुआ मिला शायद उसे बिजली के तारों से उसे करंट लगा हो या और कोई कारण रहा हो।काबर पक्षी अक्सर जोड़े में ही रहते है।उसी के समीप उसका साथी कलरव कर रहाथा।ऐसा लग रहा था वो उसे बचाने की गुहार कर रहा हो।
उसकी वेदना बेहोश पड़े अपने साथी के प्रति थी।जो उसके आसपास मंडरा रहा था।ऐसा लग रहा था कि वो कह रहा कि कोई मेरे साथी को बचालो।आसपास कुत्ते आ गए थे।वे चाहते इंसान हटे और इसे हम खा ले।इंसान इनके हाव भाव जानता पहचानता है।मूक पशु पक्षी भले ही इंसानी बोली ना बोल पाते हो।वे इंसानी हरकतों को जानते है।आसपास वाहन और लोग बाग भी गुजर रहे थे।लेकिन जीवन की भाग दौड़ में पशु पक्षियों की सेवा,सुरक्षा की फुर्सत कहाँ?कुछ ही सेवाभावी लोग होते है जो इस और ध्यान देते है।इंसान का जिस तरह पृथ्वी पर रहने का अधिकार है।ठीक उसी प्रकार पशु पक्षियों का भी है।गिरे हुए काबर पक्षी को पुत्र घर ले आया।उसकी धड़कन चल रही थी।पत्नी और पुत्र ने चम्मच से पानी पिलाया।छत पर
पर ले जाकर सूर्य के धूप की ऊर्जा दी।पीड़ित पक्षी उल्टा पड़ा रहा।तकरीबन एक घण्टे बाद उसमें कुछ हलचल हुई।उसको आहार चम्मच से दिया।पक्षी के शरीर पर स्पर्श कर उसे स्नेह दिया।उसके बाद वो अपने पैर पर खड़ा हुआ।मगर उस समय उड़ ना सका।थोड़ी देर बाद उड़ कर सामने के झाड़ पर बैठ गया।उसका दूसरा साथी भी वहाँ आ पहुँचा।ऐसा लगा मानो वो हमारा शुक्रिया अदा कर रहा हो।खैर इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि इंसान हो या पशु पक्षी ।दुर्घटना,या बीमार की सहायता अवश्य करनी चाहिए।ये पुनीत कार्य मन को सुकून प्रदान करता साथ ही पक्षी सेवा के प्रति मानवीय दृष्टिकोण का आधार मजबूत करता है।
— संजय वर्मा “दृष्टि”