झूठे प्यार के तिलिस्म मैं फंसती युवतियां, टूटती संस्कार की कड़ियां
आजकल युवा प्रेम को व्यवहारिक बनाने के चक्कर में प्रेम के मूल संवेदना को ही खत्म करने लगे हैं। जैसे कि आए दिन प्रेम में हत्या या बलात्कार तक की घटनाएं होती रह रही हैं। आजकल युवा का आकर्षण से प्रेम तक के बीच का समय काल काफी कम हो रहा है। कुछ घटनाओं में तो अनजान से दोस्ती, दोस्ती से प्रेम और प्रेम से सेक्स और सेक्स से घर से भाग जाने तक कि घटना इतने कम दिनों में हो जाती है जिसे समझ नहीं आ रहा है। एक दूसरे को जाने बिना समझे बिना काफी रिश्तों को काफी आगे ले जाने की बीमारी से समाज ग्रसीत है। दोस्ती होती है, शादी की बात होती है और फिर इनका व्यवहार ऐसे ही मानो पति पत्नी हो फिर कुछ दिन में सब खत्म क्योंकि जब रिश्ते शारीरिक जरूरत के अनुसार बनता है तो टूटना स्वाभाविक है। इससे बचने के लिए युवाओं को दोस्ती और प्रेम तथा अपने और बहुरूपिये के बीच के अंतर को समझना होगा।
आफताब श्रद्धा जैसी घटनाएं बहुत दुखद है। एक सभ्य समाज के नाम पर कलंक है। आज़ादी की चाह हमारे युवाओं को भटकाव की ओर ले जा रही है। परिणाम लड़कियों को ही भुगतना पड़ता है। काश! हमारी बेटियों को समझ आ जाए। वे माता-पिता को अपना बैरी ना समझे। अपने जीवन के कीमती वर्ष पढ़ाई और कैरियर में लगाएं। एक निश्चित उम्र के बाद ही अच्छे बुरे की समझ भी आती है। आजकल के मां बाप भी कैरियर बनाने के चक्कर में अपने बच्चों को जमाने के ऊंच-नीच नहीं बताते। सिर्फ पढ़ो पढ़ो कैरियर बनाओ। जो नसीहत उन्हें शुरू से देनी चाहिए वह उन्हें कभी नहीं मिलता। वे सिर्फ कैरियर के गुलाम बनकर रह जाते हैं। ऐसे में जब आफताब जैसा भेड़िया उनसे नकली मुहब्बत दिखाता है तो वह उसी को असली प्यार समझ कर अपने परिवार से विद्रोह कर बैठती है। फिर जो परिणाम होता है वह सर्वविदित है। लड़की की तो शत प्रतिशत गलती है जिसका परिणाम भुगत लिया उसने। इतनी निशृंस हत्या करना, एक गंदी सोच का ही नतीजा है। प्रेम शब्द का सिर्फ सहारा लिया।
आश्चर्य है कि विदेश में रहने वाले लोग भारतीय संस्कृति की ओर आने लगें हैं और भारत के युवा विदेश के कल्चर को अपना कर आधुनिकता का आवरण ओढ़ कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। लिव इन रिलेशनशिप में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का अधिक दैहिक और मानसिक शोषण किया जाता है। आधुनिकता के नाम पर हम आने वाली पीढ़ी को कितना गलत मैसेज दे रहें हैं। माता पिता आर्थिक उपार्जन हेतु व्यस्त रहते हैं और बच्चों को समय नहीं दे पाते और बच्चे इंटरनेट पर उपलब्ध ज्ञान का गलत मतलब निकाल लेते हैं। सचमुच आने वाली पीढ़ी के लिए यह बहुत भयावह स्थिति है। वैसे लिव-इन को कानूनी मान्यता देना हमारे संस्कार के विरुद्ध है, इसका साफ-साफ अर्थ ये कि हम पाश्चात्य रंग में रंग गए। इसमें समाज के साथ-साथ माता-पिता और सरकार को भी सोचने की आवश्यकता है। रही सही कसर वेब सीरीज और चलचित्र निकाल दे रही हैं। बहुत दुखद और भैयावह स्थिति है संस्कार को आज दकियानूसी का निशानी बताया जा रहा है।
पहले बहुत जाँच पड़ताल के बाद रिश्ते हुआ करते थे । अब सब फ़ास्ट हो गया है। सब हर बात के लिए इसी भागमभाग में लगे हैं कि कहीं बढ़िया मौका चूक न जाएं, दौड़ में पीछे न रह जाएं। स्पीड में तरक्की वैभव सुख मज़ा सब पा लेने को आतुर युवक युवतियां अंधाधुंध दौड़ रहें हैं भूल जाते हैं कि मुंह के बल गिर भी सकते हैं। ये पश्चिम नहीं …संस्कारों की चिकनी चट्टान बहुत चोट पहुंचा सकती है… युवाओं को अब रुककर, थोडा़ सोचने की ज़रूरत है।
— कालिका प्रसाद सेमवाल
सही कहा आपने। आधुनिकता की अंधाधुंध दौड़ से हमें बचना होगा। माता- पिता को अपना बैरी न समझे।आज़ादी की चाह हमारे युवाओं को भटकाव की ओर ले जा रही है। बहुत खूब। सादर