कहानी

असंतोष

समय कैसे भाग रहा है कुछ समझ में नहीं आ रहा समय दो भागों में बांट चुका है एक यंग जेनरेशन एक पुरानी जनरेशन, समय का यू तेजी से बदलना, प्रकृति का यूँ तेजी से बदलना बहुत कुछ बदलता जा रहा है यह किस दिशा में जा रहा है शायद हम अपने आपको ही नहीं समझ पा रहे…
           हम सब आज अमन के घर पहुंचे,घर पहुंचते हैं तो अमन हमें अपने कमरे में ले जाता है, और कमरा बंद कर लेता है, अरे अमन ये क्या कर रहा है मैंने बोला,
            यार तू जानता नहीं माँ कमरे के बाहर कान लगाए हमारी बातें सुनती हैं मैं बहुत तंग आ चुका हूँ, उन लोगो की रोज रोज के रोका टोकी से, अमन के लहेजा में कुछ गुस्से से भरा था…… शेखर…..ऐसा मत बोलो तुम्हारी मां है… अमन…..माँ हैं तो क्या वह मेरे ऊपर अपना आधिपत्य जमाएंगी। मैं सन्न रह गया….। आगे  मैंने कुछ बोलना ठीक ना समझा….।
            हमारे घर में ऐसा माहौल ना था हम सबको सुबह में 6:00 बजे उठने के बाद टहलना के बाद…नाश्ता हम सब एक साथ करते थे, पापा और माँ ने हम लोगों की यह रूटीन बना रखा था….,और सुबह ना उठने पर डंडे पडते थे…., और कभी पापा तो पानी ही डाल देते, हमारे घर में हंसी खुशी का माहौल था, परिवार में कोई अलग खोना नहीं पकड़ता था…,दिन को मौका मिले ना मिले रात का खाना डिनर एक साथ होता था, आज अमन के घर से लौट कर मुझे यूं लग रहा था शायद पापा माँ ने हमारे लिए बहुत अच्छा किया है। उनका अपने दिल में शुक्रिया अदा कर रहा था. उनकी पाबंदियां आज मेरे समझ में आ रही थी….।
            अमन के घर में मुझे घुटन सी महसूस हो रही थी उसके यहां का माहौल एकदम विपरीत था. घर में एक अजीब सा सन्नाटा. अमन के कमरे में भी हर चीज बिखरी पड़ी हुई. यूं लग रहा था जैसे वह सिर्फ सोने के लिए उस कमरे में आता हो, और होता भी क्यों ना, दिन में वह कब जगा रहता है, ज़ब भी उसको फोन लगाओ तो उसका फोन स्विच ऑफ आता है शाम के 7:00 बजे से लेकर मॉर्निंग के 5:00 बजे तक ऑनलाइन रहता है, यह दुनिया कैसी घूमती जा रही है दिन में सोना रात में जागना, न्यू जनरेशन को ऐसा लग रहा है कि उसे अपने बड़ों से कोई मतलब ही नहीं है, इन्होंने अपनी एक नई दुनिया बना ली है, कंप्यूटर, मोबाइल ये इनके फैमिली मेंबर हो गये हैं.
            दूसरे दिन मैं सुबह 8:00 बजे अमन के घर पहुंचा, अमन के पापा गार्डन में चाय पी रहे थे, मुझे देखते उन्होंने बड़े प्यार से अरे शेखर बेटा तुम… आओ आओ बैठो आज चाय तुम्हारे साथ ही पिऊंगा , और बताओ कैसे हो तुम, जी ठीक हूं. एक छोटा सा नपा तूला जवाब देने के बाद मैं अंकल के पास बैठ गया, अंकल ने आंटी को आवाज लगाई अरे रीमा सुनती हो शेखर आया है, एक कप चाय और भेज दो, आंटी ने अंकल को वही से आवाज लगाई, मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है प्लीज तुम आके ले लो, मैंने अंकल से बोला…. मैं ले आता हूं,  मैं गया और किचन से चाय  लेकर आया और अंकल के पास बैठ गया चाय पीते पीते मैंने अंकल से पूछा अमन कहां है, अंकल ने थोड़ा मुस्कुराते हुए बोले वही अपनी जगह अपने कमरे में हैं। हम दोनों लोग चुपचाप बैठ कर चाय पीने लगे. उसके बाद ना अंकल ने कुछ बोला ना मैंने, चाय पीने के बाद में उठा और अंकल से बोला मैं अमन से मिलने जा रहा, अंकल ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ बोले  अभी उसकी सुबह नहीं हुई है और वह अभी नहीं जागेगा. कोई बात नहीं अंकल मैं उसे जगा लूंगा, और मैं अमन के कमरे की ओर चल दिया,  कमरे में पहुंच कर मैंने देखा अमन  पेट के बल लेटा हुआ था… लेटा क्या सोया हुआ था, मैंने अमन को हिलाया डुलाया पर वह उठने को तैयार न था…
            मैं गुस्से में उसके कमरे से निकल कर अपने घर की ओर चल दिया. अमन पर आज गुस्सा बहुत आ रहा था, कोई ऐसा बेसुध होकर कैसे सो सकता है, दोस्त के उठाने पर भी नहीं जगा. मन तो कर रहा था पापा की तरह एक बाल्टी पानी उसके ऊपर डाल दूँ…
            दिन का करीब 2:00 बजा हुआ था तभी मेरे फोन में रिंग बजती है मैं फोन उठाकर देखता हूँ यह तो अमन का फोन था मैंने फोन काट दिया, मन ही मन गुस्सा आ रहा था उस पर,एक घंटे बाद अमन घर आया।
       आंटी शेखर कहाँ है मेरा फोन नहीं उठा रहा माँ ने हंसकर अमन को मेरे कमरे में भेज दिया,अमन को देखते ही मैंने मुँह फुला लिया, साले हट जा मुझसे बात मत कर,पर दोस्त तो दोस्त ही होते हैं साले कमीने ही क्यों ना हो मैं भी मान गया.. थोड़ी देर में मां और बहन चाय और नाश्ता लेकर मेरे कमरे में आ गई अमन बेटा लो नाश्ता करो  तुमने नाश्ता किया ,..नहीं आंटी मैंने नाश्ता नहीं किया है सोचा साले के साथ बैठकर करूंगा।
        शेखर ने एक घुसा कस के अमन की पीठ पर धारा अमन ने पीठ को टेढ़ा करके आह ! की आवाज निकली.. आंटी ने अमन को अपने गले से लगा लिया, और शेखर को जोर की डांट लगाई ऐसे मारता है कोई खाते वक्त किसी को,
       शेखर ने अमन से पूछा लग गई क्या.. यार…? तुझे, अमन ने बोला अरे नहीं यार..हम सब बैठकर हंसी मजाक होने लगा… हंसी मजाक करते हुए टाइम का कुछ पता ही नहीं चलता, हम दोनों ने सबके साथ बैठकर घर में खाना खाया। और उसके बाद माँ और दीदी अपने कमरे में चली जाती गई..।. हम दोनों दोस्त बैठकर बातें करने लगे , अमन बोला…  साले तू मेरे घर आया तो तूने मुझे मार के जगाया क्यों नहीं.. साले तू उसे घर कहता है जहां एक सन्नाटा छाया रहता है.
          मैंने अमन से जानने की कोशिश की आखिर सब अलग-अलग क्यों रहते हैं ऐसा क्या घटा कि अमन तू अपने कमरे में अकेले रहता है, अमन ने  बात को बहुत टालने की कोशिश की, पर आज मैं जानने को उत्सुक था …। फिर क्या अमन ने बताना शुरू किया…यार जब छोटा था तो माँ पापा ने मुझे आया के पास रख पाला, मुझे चोट लगती थी, भूख लगती  थी…. तो आया मेरे लिए खाना लाती .. मां पापा को पैसे की इतनी ललक थी कि बच्चा रो रहा है या नहीं उनसे कोई मतलब ना था,……..अमन रोता जा रहा था उसकी आंखों से आंसू झर झर बहते जा रहे थे जैसे आज उसके दिल( रुपी) समुद्र का कोई बांध तोड़ कर सैलाब आ गया हो…….मैंने ने भी उसे रोकने की कोशिश ना की, अमन आगे बोला स्कूल से घर आने पर मेरे दिल की बात कोई सुनने वाला ना होता, कभी-कभी तो मैं रोते हुए सो जाता बिना खाए पिए, तुम्हारे घर पे  तुम्हारी फैमिली कितनी अच्छी है तुम्हारे रोने पर तुम्हारे उदास होने पर कम से कम तुमसे पूछती तो हैं, मेरे मां-बाप को पार्टी में जाना होता था तो वह अकेले चले जाते थे, मुझे  तो आया के पास छोड़ कर,……आया इसे खिलाकर सुला देना, पैरंट टीचर मीटिग,फंक्शन में सबके पेरेंट्स आते थे मेरे पेरेंट्स को ऑफिस से छुट्टी नहीं रहती थी, यार ऐसी भी क्या नौकरी की बच्चे के लिए उनके पास समय ही न हो….. अब अमन रोते रोते भी थक चका हूँ……पर वह रुकने का नाम ना ले रहा था बोलता जा रहा था….. आगे बोला…..मेरे कुछ मांगने से पहले ही मेरी सारी फरमाइशे पूरी हो जाती है… मुझे उनसे बात करने की क्या जरूरत….. अब तुम ही बताओ जब उनके पास मेरे लिए समय नहीं है तो मैं उनसे क्या बात करूं, मेरे लिए सिर्फ उनके पास इंस्ट्रक्शंस ही रहते हैं मैंने भी अपनी एक अलग दुनिया बना ली है जब वह घर पर रहते हैं तो मैं सोता हूं जब वह सोते हैं तो मैं जगता हूं… अगर मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है तो उन्हें क्यों मुझसे शिकायत है…..?
         मैंने अमन कि तरफ गिलास का पानी बढ़ाया चुपचाप पानी को पी गया …।उसकी सिसकियाँ रुकने का नाम नहीं ले रहे थी….।मम्मी भी दरवाजे पर खड़े सब बातें सुन रही थी. अंदर आकर उन्होंने माहौल को कुछ हल्का किया….।
         अरे बेटा आज तुम यहीं रुक जाओ आज मैंने तुम्हारी मनपसंद पूरी बनाई हैँ तुम लोगों के लिए….,तभी दी भी आ जाती है बोलती है चलो ना कैरम खेलते हैं……. तब तक अमन भी अपने आप को संभाल चुका था….। हम सब कैरम खेलने में मस्त हो जाते हैं कैरम खेलते खेलते कब रात हो जाती है पता ही नहीं चलता…
         तभी मां की आवाज आती है बेटा नीचे आ जाओ खाना लग गया है हम सब नीचे  आ जाते हैं और खाना खाने लगते है। अमन भी आज अपना दिल खोल कर रो चुका था उसका भी दिल हल्का हो चुका था। शेखर ने अमन के घर फोन कर दिया….। अंकल आज अमन मेरे साथ ही रहेगा..माँ ने अमन को रोक लिया है अंकल ने भी रुकने की सहमति दे दी।
         ना कभी समय बदला है और ना जिंदगी की भाग दौड़…। शिकायतें तो हर हाल में हैँ जिसके पास पैसा नहीं है वह भी अपने मां-बाप की शिकायत करता है  की फरमाइश पूरी नहीं होती…..। गलती किसकी है  ?……..
         सारी गलती परवरिश के जैसे नजर नदियों समुद्र के लिए बांध बनाया जाता है वैसे ही परिवार मैं भी कुछ  नियम होते हैं। इनका पालन करके ही परिवार को सुचारू रूप से चलाया जा सकता है, अमन के परिवार में कोई नियम नहीं थे, उन्होंने मन को खुली छूट दे रखी थी, जिसका परिणाम अमन (रूपी) नदी ने बांध तोड़ सैलाबला दिया…..। आप जो बोयेगे वही काटेंगे……..
— साधना सिंह स्वप्निल

साधना सिंह "स्वप्निल"

गोरखपुर में मेरा ट्रांसपोर्ट का बिजनेस है, मेरी शिक्षा लखनऊ यूनिवर्सिटी से हुई है, मैंने एम ए सोशल वर्क से किया है, कंप्यूटर से मैंने डिप्लोमा लिया है