असंतोष
बचपन के वो दिन तो सबको ही याद होंगे जब हमारी गर्मियों की छुट्टियां होने से पहले ही हम अपने प्लान बना लेते थे यहां जाना है वहां जाना है नाना-नानी दादा-दादी के यहां हम सबको जाना है, मम्मी पापा भी कैसे अपनी अपनी तैयारी करते थे बच्चों को इतने दिन यहां छोड़ना है.। गांव आते ही हम शहर के बच्चे एकदम गांव के माहौल में रम जाते थे ऐसा लगता ही नहीं था कि हम बहुत संस्कारों में पले हैं..।
गांव पहुंचते ही कैसे नानी नाना, मामा मामी चचेरे भाई बहन सब एक दूसरे में घुल मिल जाते थे लगता ही नहीं था, की हम सालों बाद मिल रहे हैं एक थाली में खाना, एक दूसरे से प्यार से लड़ना फिर गले लग जा ना। मामी , नानी कैसे अपने दुपट्टे के नीचे या साड़ी के आंचल के नीचे हम लोगों को छुपा लेती थी मां की डांट से बचाने के लिए, ना वह आंचल रहा ना वह चुनरी रही..
पहले घर में किसी मेहमान के आने से पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती थी, अपने घर सामान ना रहने पर भी दूसरे के घर से मांग कर ला कर रख दिया जाता था पड़ोसी भी बड़े खुश हो कर अपना सामान देते थे जैसे उनके ही मेहमान आए हो , ना किसी का बड़प्पन होता था ना किसी का छोटापन मांगने में, सब एक दूसरे की मदद दिल खोलकर करते थे, आज रिश्तो का खोखला पन नजर आने लगा है किसी मेहमान के आने से पहले घर में बुराइयां शुरू हो जाती हैं, वह दिन कहां चले गए जब मेहमानों के आने पर घर में खुशियों का माहौल होता था जैसे लगता था कोई त्यौहार हो आ रहा है पहले से ही तैयारी में जुट जाते थे।
सीमा की आज दूर की चाची जी आने वाली थी सीमा ने बच्चों से कहा आज तुम्हारी चाची नानी आने वाली हैं सीमा के दोनों बच्चे सिया और रवि अजीब सा मुंह बनाने लगते हैंऔर गुस्से में…क्या है मां तुम मना क्यों नहीं कर देती। आपके मायके वाले तो ऐसे आ जाते हैं जैसे कोई होटल हो, मां आप चाची नानी को मना कर दो बोल दो कि हम लोग कहीं बाहर जा रहे हैं, वह जब भी आती है टीवी लेकर बैठ जाती है कमरे में जब चाहे बिना बताए बिना खटखटाया अंदर आ जाती हैं सारी प्राइवेसी खत्म हो जाती है, मां अब हम गांव में नहीं शहर में रहते हैं, वह आती है तो कमरे में सब अस्त-व्यस्त कर देती हैं अपना झोला लेकर ड्राइंग रूम में ही बैठी रहती हैं जैसे उस झोले में सोना चांदी हीरे जवाहरात पर रखे हो, हमारे दोस्त आते हैं, उनके सामने हमें शर्मिंदगी उठानी पड़ती है,
सीमा बच्चों की बातों को सुनकर दंग रह जाती है और वह अपना सर पकड़ कर बैठ जाती है…तुम लोग कैसी बातें कर रहे हो बेटा…वह तुम्हारी चाची नानी है मैं कैसे उनको मना कर दूं। बुजुर्ग है, तुम लोग थोड़ी देर उनसे दो बाते कर लोगे तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा।.
सिया… मां तुम देख लो हम लोगों से कोई उम्मीद ना रखना, उन्हें तुम अपने कमरे में ही रखना, हम लोग के पास तो फटकने भी ना देना, सीमा की अब कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें…..बच्चों के सामने उसकी एक ना चल रही थी….तभी रवि बोलता है ,और हां माँ मेरी सुबह से शाम तक ऑनलाइन क्लासेज चलेगी उनसे कहना टीवी ना चलाएं.।
सीमा की कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह बच्चों की बातों को मुक बनी सी सुन रही थी, बच्चों से रिक्वेस्ट करती है प्लीज दो-तीन दिन की ही बात है फिर वह चली जाएंगी अपनी बेटी के यहाँ, पर सीमा की बात को बच्चे सुनने के लिए तैयार नहीं होते, सीमा बिना कुछ कहे कमरे से बाहर चली जाती है और अपने कमरे में जाकर लेट जाती है।
शाम को सुरेश घर आता है और सीमा को आवाज लगाता है सीमा कहां हो तुम…….सीमा कोई आवाज नहीं देती है सुरेश कमरे में जाते हैं तो देखते हैं सीमा अंधेरे कमरे में लेटी हुई रो रही थी, सुरेश सीमा से पूछता है क्या बात है तुम्हारी तबीयत ठीक है….? सुरेश का अपनापन देखकर सीमा की आंखों से झर झर आंसू बहने लगते हैं सुरेश बड़े प्यार से से गले लगा कर पूछता है क्या बात है क्या हो गया। सीमा सुरेश को सारी बात बताती है, सुरेश शांत भाव से सीमा की सारी बातों को सुनता है फिर सीमा से कहता है….. यह आजकल के बच्चे हैं यह जॉइंट फैमिली में नहीं पले हैं , हमने सबके साथ शेयर कर करके अपना बचपन और समय बिताया है, और इन बच्चों का रहन सहन अलग है…. धैर्य रखो.। मैं कल बच्चों से बात करूंगा. सुरेश की बातों को सुनकर सीमा को थोड़ी राहत हुई ।
दूसरे दिन सुरेश ने बच्चों को बुलाया….।पापा की आवाज सुनकर बच्चे समझ चुके थे कि आज मम्मा ने पापा से सेक दिया है…..। पर सुरेश ने बड़े प्यार से बच्चों को समझाया बेटा जो फ्रीडम हमें नहीं मिली वह फ्रीडम मैंने आपको दी, इसका यह मतलब नहीं कि हम अपने संस्कारों को भूल जाए….।अगर चाची नानी 1 दिन के लिए आ रही हैं तो आपको सामंजस्य बैठा हीं पड़ेगा, तभी सिया बीच में बोल पड़ी पापा वह हमारे कामों में रोक-टोक मचाती हैं, सुरेश तो क्या हुआ, आप उनसे अच्छे से बात करोगे एक-दो दिन अपने कामों को छोड़ दोगे तो आपका कोई हर्जा नहीं होगा, फिर वह अपने घर चली जाएंगी, मैं आपको यह संस्कार तो नहीं दिए क्या आप किसी बड़े से बात ना करें, वह गांव से हैं आपको अच्छी ना लगे, हम भी तो गांव से हैं तो हम भी आपको अच्छे नहीं लगते होंगे,
सिया सक पका जाती है नहीं पापा ऐसी बात नहीं है तो कैसी बात है मैंने आपको पढ़ा लिखाया है कि आप में अच्छे संस्कार आ सके, यह नहीं कि आप अपने से हम लोगों को दूर करें, आज आप हमारी चाची को दूर कर रहे हैं कल आपके बच्चे हमें दूर करेंगे,तो क्या आपको अच्छा लगेगा,।
सुरेश थोड़ा स्ट्रीक होकर अपने बच्चों को समझाने के बाद बोला अगर आप लोग अच्छे से चाची जी से नहीं बात करेंगे और नहीं रहेंगे तो हम भी आज ही आप लोगों से अलग होने का डिसीजन लेना पड़ेगा…। बच्चों ने सुरेश और सीमा से सॉरी बोला और उन्हें अपने पापा सुरेश की बात अच्छे से समझ आ चुकी थी
सुरेश ने थोड़ा प्यार थोड़ा स्ट्रिक होकर अपने बच्चों को समझाया जो बात उनके बच्चों को समझ में आ चुकी थी और सब ठीक हो गया…….। बच्चे कच्ची मिट्टी के बर्तन की तरह होते हैं.. माँ बाप को ही अनुशासन से संभालना पड़ेगा जैसे कुम्हार टेढ़े बर्तनों को सीधा करता है मार मार कर……। बच्चों को प्यार के साथ संस्कार भी बचपन से ही दें…।
— साधना सिंह स्वप्निल