माँ की तुलना सिर्फ धरती से है
- माँ की तुलना सिर्फ धरती से है
आँचल में छुपाकर के अपने,
ममता के स्नेह से नहलाती है।
अँगुली पकड़कर माँ ही पहले,
इस दुनिया में चलना सिखाती है।
माँ प्रथम गुरु होती है सबकी,
जीवन की पहली पाठ पढ़ाती है।
पतित न हो संतान कभी भी,
वो हरदम नजरें रखती है।
निःस्वार्थ प्रेम क्या होता है,
माँ की जीवन बतलाता है।
फर्ज निभाना जानती है वो,
बदले की चाह न होती है।
माँ की तुलना सिर्फ धरती से है,
जो सबकी बोझ उठाती है।
और न दूजा इस दुनिया में,
जिससे माँ की तुलना होती है।
अथक वेदनाएँ सहकार माँ,
हमें इस दुनिया में लाती है।
सिर सदा आदर से झुकता है,
जब भी माँ की चर्चा होती है।
माँ अपने बच्चों के खातिर,
सदा भला ही सोचती है।
वो पग-पग राह बताती है,
माँ जीवन जीना सिखाती है।
अमरेन्द्र
पचरुखिया,फतुहा,पटना,बिहार।
(स्वरचित एवं मौलिक)