भारतीय समाज में आने वाली पीढ़ियां ना जाने किस और जा रही है और आने वाला समय ना जाने किस मोड़ पर बच्चों को ले जाएगा। कई बार ऐसा होता है यदि बच्चे पढ़ाई लिखाई में कमजोर है और उनके रिपोर्ट कार्ड में अंक कम आते हैं तो माता-पिता गुस्से में अपने बच्चें को पीट देते हैं, जिसकी वजह से बच्चे कुंठा के कारण उद्दंड हो जाते हैं। यदि आप माता-पिता उसे प्रेम से सही गलत का फर्क बताएं तो बच्चे समझेंगे, यदि उनकी पिटाई कर दी जाएगी तो बच्चा अत्यधिक दबाव में आ जाएगा। आजकल काफी बच्चें मोबाइल पर आने वाली रील्स के पीछे भाग रहे हैं उस में आने वाले अश्लील चित्र देख बच्चें गलत हरकतें सीख रहे हैं। आज जो समाज में हर जगह गलत हो रहा है उसका एक कारण यही है कि बच्चे अनुशासन में नहीं रहते हैं और यह बड़े होकर गलत कार्य करते हैं इन पर रोक लगनी चाहिए।
यदि बच्चों से कुछ धार्मिक चीजों में किसी पात्र के नाम पूछे जाए तो वह नहीं बता पाते हैं, उन्हें किसी प्रकार की वेदों का ज्ञान नहीं होता है। ना ही यह बच्चें अपनी गलतियों को मानने को तैयार है, जिसकी वजह से समाज में फैलती हुई बच्चों की अनुशासनहीनता उन्हें गलत राह पकड़ने पर मजबूर कर रही है। अक्सर बच्चे हिंसात्मक चीजों को सामने होता हुआ देखते हैं जिसका असर उनकी मानसिकता पर पड़ता है और वह सबसे अलग-थलग रहने लगता है और उसके अंदर जन्म लेती है गलत भावना। जब बड़े बच्चों पर हाथ उठाते हैं तो वह बच्चें भी वही चीज सीख लेते हैं और जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो यह अपने भाई-बहनों पर भी हाथ उठाते हैं जिसका माता-पिता माता पिता विरोध करें तो यह माता-पिता और बीवी बच्चे सुनते नहीं है।
बच्चों को परिवार के नियम सिखाए जाने चाहिए, उन्हें मारने की जगह बातों से समझाएं। बच्चों की पढ़ाई लिखाई का स्तर ऐसा बनाएं कि बच्चे हर छोटी से छोटी चीजों का ज्ञान प्राप्त कर सकें। यदि बच्चा अनुशासित रहेगा तो गलतियों की नौबत नहीं आएगी, ना ही माता-पिता को हाथ उठाना पड़ेगा। यदि बच्चा देर तक मोबाइल में रहता है तो उसे रोक देना चाहिए, देर रात तक जो बच्चें बाहर घूमते हैं उनका समय माता-पिता को निश्चित कर देना चाहिए। बहुत छोटी उम्र के बच्चों को नमस्कार कहना सिखा देना चाहिए आदर भाव की भावना बच्चे के मन में होनी चाहिए। बात-बात पर गलती करने वाले बच्चें अक्सर माता-पिता के क्रोध का शिकार होते हैं। ऐसे में वह अपने माता-पिता को दुश्मन समझ बैठते हैं, उन्हें लगता है कि हमारे माता-पिता को कोई फर्क नहीं पड़ता है हमारी तकलीफों से और फिर वह अपने माता-पिता को पलट कर जवाब देना सीख जाते हैं और किसी के सामने भी उनका अपमान करने से नहीं चूकते हैं। भावनात्मक रूप से आहत बच्चे ऐसा जरूर से करते हैं इससे माता-पिता का बच्चों के साथ रिश्ता कमजोर हो जाता हैं। रिश्तों की कमजोर होती डोर बच्चों के बौद्धिक विकास को प्रभावित करती है। बच्चों के मानसिक विकास के लिए और उनको शिक्षित करने के लिए परिवार के कायदे कानून अवश्य सिखाएं। बच्चों की प्रतिक्रिया और उसकी किसी बात पर रुचि ना होने पर उन्हें समझाने का प्रयास करें। अगर बच्चें से कोई गलती हो जाए तो उसे नजरअंदाज ना करें उन्हें आघात देने वाली सजा न दे, उन्हें गलती होने पर एहसास कराएं इसके लिए आप बच्चों से बात करना कम कर सकते हैं और बच्चे से ध्यान थोड़ी देर के लिए हटा सकते हैं ताकि बच्चे को यह लगे जो उसने किया है वह गलत कार्य किया है। इसलिए माता-पिता उनसे नाराज है बच्चों को केवल गलती का एहसास कराना चाहिए ना कि उसे प्रताड़ित करें। मार खाने से बच्चें असामाजिक बनते है, बच्चों की उद्दंडता पर लगाम जरूर लगाएं और अपने बच्चों को अनुशासन हीनता से बचाएं।
हर विषय का ज्ञान बच्चों को होना जरूरी है हिसाब किताब से लेकर घर के कामों की जिम्मेंदारी बच्चों पर जरूर डालें ताकि बच्चें जिम्मेंदार बने। गैर जिम्मेदार होने से बच्चों में कार्य करने की क्षमता घट जाती है और वो आलसी हो जाते हैं। खेलकूद का समय निश्चित कर दीजिए, पढ़ाई लिखाई पर ध्यान उनका ज्यादा केंद्रित करें ।हमारी भारतीय संस्कृति के बारे में बच्चों को अच्छी-अच्छी किताबे पढ़ने को दे तथा कहानियां सुनाएं ताकि बच्चे बड़े होने पर इन सब का ज्ञान अर्जित कर सके ।बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से माता-पिता को जुड़ना चाहिए क्योंकि अच्छे बुरे का संस्कार माता-पिता देते हैं। स्वस्थ समाज का निर्माण तभी हो सकता है जब बच्चें शिक्षित हो और स्वयं की जिम्मेदारी उठा सके।
— पूजा गुप्ता