तथ्यहीन विश्वास इंसान का वक्त बर्बाद करता है अच्छा खासा धन भी खर्च करा देता है। कर्म की बजाए धर्म के पीछे भागने वालों ने अंधश्रद्धा का व्यवसाय करने वालों के हौसले बुलंद कर रखे है। आखिर कब लोग विवेकशील होंगे? ऐसी कई घटनाएं होती रहती है जो तथ्यहीन विश्वास के वशीभूत होकर जनता उन पर अपना पैसा बर्बाद करने पर तुल जाती है और धर्म के नाम पर होने वाले नागरिकों को लूटने वाले हमारे देश के कोने-कोने में व्याप्त है। वेश बदलकर भीख मांगने वाले की संख्या हमारे देश में इतनी ज्यादा है कि हर जगह घर परिवार को छोड़कर सन्यासी बन जाना आम बात हो गई है। देश में ज्यादातर झगड़े धर्म के नाम पर होते हैं। हमारा सनातन धर्म क्या आपस में लड़ना सिखाता है? ऐसे कई शासकों ने भारत पर हमला करके मंदिरों को नष्ट किया था जो हमारी संस्कृति की छत्रछाया को धूमिल कर दिया। राजाओं ने भी इतने गलत काम किए उनके लिए उनके पूर्वजों ने जो शिक्षा दी थी उसका उन्होंने काफी दुरुपयोग किया। शिक्षा पर अमल करने वाले लोगों की समाज में कमी हो गई है मंदिर मस्जिद के नाम पर लड़ने वाले लोग आजकल केवल एक दूसरे को लड़ाने में लगे रहते हैं। लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए ना जाने कितने तीर्थ स्थान और नदियों में स्नान करते हैं, लेकिन उनकी गंदी सोच को क्या वह तार सकते हैं? लोग चाहे कितना भी गलत काम कर ले अंत में वह नदी के मुहाने पर अपने गलत कर्मों की मुक्ति के लिए मिल जाते हैं पाप धोने के लिए।
यदि किसी को सच्चा भक्त बनना है तो अपनी बुराइयों का त्याग करना होगा। जो धन आप मूर्तियों पर चढ़ाते हैं वह पुजारी लेता है तो भगवान तक वह पैसे कैसे पहुंचेंगे? जो लोग धर्म के नाम पर लड़ते हैं क्या वह अपनी बुराइयों को त्याग पाते हैं? यदि वह अपनी बुराइयों को त्याग नहीं पाते तो मंदिर क्यों जाते हैं? कुछ लोग झाड़-फूंक के चक्कर में इस तरह पड़ जाते हैं कि यदि कोई गंभीर बीमारी भी हो तो सबसे पहले ओझा के पास जाना उचित समझते हैं। यह समस्या अक्सर बिना पढ़े लिखे लोग और गांव के लोगों में अधिकतर पाई जाती है आजकल पढ़े लिखे लोग भी इन सब जंजाल में फंस कर रह जाते हैं। धर्म के ठेकेदारों ने धर्म का सहारा लेकर अपनी जेब भरने का ही हमेशा प्रयास किया है। पंडित प्रवचन देते रहते हैं और लोग उसे सुनते रहते हैं पर उस पर अमल कोई नहीं करना चाहता है, जबकि देखा जाए तो लोग धर्म का पालन करने वाले होते तो आज जाति भेद ना होता। अक्सर इलाज के अभाव में मृत्यु दर इतनी बढ़ गई है फिर भी इंसान ढकोसला में फंसा रह जाता है और इसमें ज्यादातर महिलायें भोलेपन के कारण ठग जाती है।
कर्मकांड पुरोहित, मौलवी या पादरी भोली भाली जनता को झंझावात में फंसा कर सच्ची श्रद्धा से वंचित कर देते हैं। अपने झांसे में फंसाकर जनता से पैसे ऐठने वाले, धर्म की दुकान खोलने वाले इस तरह के पाखंडी आपको जगह-जगह मिल जाएंगे जो आपके हितों का हवाला देकर तथ्यहीन का जाल बुन देते हैं। अक्सर दानपात्र में जो पैसे डाले जाते हैं उन पैसों का इस्तेमाल मंदिर के लंगर के काम आता है, लेकिन मूर्ति पर चढ़ाए हुए पैसे को पुजारी अपने पास रख लेते हैं। सोचने वाली बात है कि ऐसे कौन से भगवान हैं जो पैसे से प्रसन्न होते हैं? लोग मंदिरों पर 10 रुपये 20 रुपये चढ़ा कर इतना खुश होते हैं जैसे उन रुपयों से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी!! अगर धर्म में जाति भेद सिखाया जाता तो मीरा विशाल राज महल छोड़कर रविदास के पास दीक्षा लेने नहीं जाती? साधु महात्मा युगो युगो तक माला फेरते रहते हैं लेकिन उनका मन शुद्ध होगा इसकी क्या गारंटी है? क्या माला के फिरने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है? कितने साधु महात्माओं ने सन्यास लिया और तपस्या की लेकिन हर युग गवाह है जब उन्होंने किसी सुंदर स्त्री को देखा तो उनकी तपस्या विफल हुई है। मेनका और अप्सरा पर मिटने वाले इंद्र भी इस जाल में फंसे थे। जब मन में मोह माया रहती है तो घर त्यागने का क्या फायदा है? इंसान अपने कर्मों से महान बनता है। आप भरपेट गरीबों को भोजन करा देते हैं, किसी की तकलीफ में आप सहायता करते हैं, किसी के बुरे वक्त पर आप सहारा बनकर खड़े रहते हैं यही आपका कर्म है और यही सब करके आप मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। दुनियाँ भर के तथ्यहीन विश्वास और रूढ़िवादिता को त्याग कर सत्य को अपनाना चाहिए। लड़ाई झगड़े द्वेष का त्याग करके भाईचारे और प्रेम का संदेश देना चाहिए। दंगा फसाद करके आप एक दूसरे का ही खून करेंगे, इससे आपको किसी प्रकार के फल की प्राप्ति नहीं होगी। आप दुनिया भर के व्यसनों शराब जुआ में लिप्त होकर अपनी जमा की हुई पूंजी को एक झटके में बहा देते हैं, मोटी रकम देकर कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान भी कराते हैं यदि आप उन पैसों का प्रयोग गरीब जनता की सहायता करने में लगाएं और किसी एक बच्चे को पढ़ाने का, किसी राह में पड़े हुए घायल को अस्पताल तक पहुंचाने का कार्य करते हैं और उस के इलाज पर अपना धन लगाते हैं तो आपको उनकी दुआएं मिलेंगी और यही आपकी सच्ची पूंजी होगी और यही आपका कर्मफल होगा और आपको सच्चा मोक्ष भी मिलेगा।
— पूजा गुप्ता