बालकहानी- बिट्टू बंदर ने की मदद
कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। साँझ होते ही जंगल के सभी जानवर अपने-अपने घरों में दुबक जाते थे। ऐसा लगता जैसे कि जंगल भर बदन कँपकँपाती हवा का पहरा हो। छोटे बच्चों को घर से बाहर निकलने की बिल्कुल इजाजत नहीं थी। अगर कोई गलती से बाहर निकल जाता, तो उसे अपने मम्मी-पापा की झिड़कियाँ सुननी पड़ती थी।
एक पेड़ पर बैठे बिट्टू बंदर ने अपनी पत्नी सुम्मी से कहा- “सबने खाना तो खा लिया न ? चलो अब जल्दी सो जाओ। सुबह जल्दी उठना है। सुम्मी, दोनों बच्चों को गर्म कपड़े पहना दो न। रजाई ओढ़कर ही सोना है सबको।”
“हाँ जी। मुझे भी सबका ख्याल है।” सुम्मी मुस्कुराती हुई बोली- “आप भी अपना ध्यान रखें। ठंड सबके लिए है जी।” सुम्मी की बातें सुन बिट्टू को हँसी आ गयी। सब सो गये।
रात का लगभग बारह बजा था। पेड़ के नीचे किसी के कराहने की आवाज आई। बिट्टू बंदर की नींद खुल गयी। रजाई से सर निकाल कर देखा। नीचे बूढ़ा मनु शेर था। ठंड के मारे वह काँप रहा था। पहले तो बिट्टू घबरा गया। फिर भी वह घर से बाहर निकला। साहस बटोरते हुए पूछा- “कहो मनु भैया ! क्या बात है ? यहाँ तुम्हारा कैसे आना हुआ ? सब ठीक तो है न ?” ठंड के कारण मनु के दाँत किटकिटाने की आवाज आ रही थी। बड़ी मुश्किल से वह बोला- “बिट्टू भाई। मुझे बहुत ठंड लग रही है। कुछ ओढ़ने-बिछाने के लिए है तो दो न।” मनु शेर की हालत देख बिट्टू को दया आ गयी। वह मनु के और पास आया। उसने सर पर मफलर लपेटा था। स्वेटर पहना था। शॉल भी ओढ़ा था। तने के पास आकर बोला- “मनु भैया, तुम चिंता न करो। लो,पहले इसे ओढ़ो।” मनु को शॉल दिया; और ओढ़ने-बिछाने के कपड़े लेने ऊपर चढ़ा। तभी सुम्मी व बच्चे भी जाग गये। पेड़ के नीचे शॉल ओढ़े मनु शेर को देख सुम्मी सब समझ गयी। उसके मना करने के बावजूद बिट्टू ने मनु को कथरी-चादर दिया।
सुबह हुई। जंगल के सभी जानवरों को पता चल गया कि मनु शेर को गर्म कपड़े बिट्टू बंदर ने ही दिये हैं। आठ-दस जानवर एकत्र हुए। मनु शेर भी चुपचाप बैठा था। बिट्टू बंदर के द्वारा मनु शेर को की गयी मदद किसी को अच्छी लगी, तो किसी को बुरी। फिर सबकी भली-बुरी बातें सुन कर बिट्टू बोला- “देखो मित्रों ! मनु शेर रात को मेरे घर के पास आया। ठंड से ठिठुर रहा था। मुझसे उसकी हालत देखी नहीं गयी। उसने मुझसे गर्म कपड़े मांगे। फिर मैंने उसे शॉल, कथरी व रजाई दी। मैं अपने घर के सामने ठंड से काँपते हुए वृद्ध शेर की मदद कैसे नहीं करता। अगर उसे कुछ हो जाता तो मैं स्वयं को कभी माफ नहीं कर पाता।”
कुछ देर तक कोई कुछ नहीं बोला। फिर चुप्पी तोड़ते हुए शिखा हिरणी बोली- “बिट्टू ने बिल्कुल सही किया है। भले ही मनु शेर ने हम सबके साथ हमेशा गलत किया है; पर है तो वह हम जानवर बिरादरी का। हम जो भी हैं; और जैसे भी हैं, जंगली जानवर हैं। उसकी सहायता हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा ? कुछ गलत नहीं किया है बिट्टू ने मनु की मदद करके।”
सबकी बातें सुन कर प्रियू नीलगाय सबके सामने आयी। बोली- “हम सब जंगल को छोड़कर कहीं जा भी तो नहीं सकते। यहाँ से निकलना खतरा मोल लेना है। अब हमारा जंगल दिनोदिन सिमटता जा रहा है। इसलिए हम सब एक-दूसरे की मदद करके अपने जंगल में ही रहें। अपनी रक्षा स्वयं करें।”
चुपचाप बैठा मनु शेर सबकी बातें सुन रहा था। बिट्टू बंदर को धन्यवाद देते हुए उसकी आँखें भर आई।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”