गीतिका/ग़ज़ल

तुम होते तो

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम होते तो।
तन्हाई में मन घबराए तो लगता है कि तुम होते तो।।
सितम किए किस्मत ने हरदम बहुत ही मुझ पर।
दुःख हद से गुजरा तो लगता है कि तुम होते तो।।
ठहरी आंखों में वो तस्वीर मुकम्मल हो न सकी।
कुछ ख्वाब अधूरे, करने थे पूरे साथ तुम होते तो।।
दिल से पुकार मिटी नहीं हर फरियाद अधूरी है।
भटके मन को मिल जाता मुकाम पास तुम होते तो।।
सारी दुनिया से जूझ लिया है, हिम्मत दुगनी होती।
दर्द झेल अव्वल आती, मरहम सा तुम होते तो।
मिला दर्द का दरिया मुझको दुख की लहरें ऊंची।
हो जाती कश्ती पार पतवार सबल तुम होते तो।।
गिरने लगती कभी, कठिन राह पर चलते-चलते।
मजबूत सहारा विश्वास तुम होते ही हो, होते ही हो।।
— आसिया फ़ारूक़ी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र