वीर दिवस
सजे गुरु दरबार में, पूछी माँ ने बात |
मात-पुत्र नहीं दीखते, कहो गुरु क्या राज ||
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व्याकुल वाणी जो सुनी, बोले गुरु तपाक |
माता-पुत्र दौऊ यहाँ, चिंता की क्या बात ||
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गुरु बोल थे जब सुने, हृदय रहा था काँप |
विचलित मन से मात ने,लिया सबै ज्यों भाँप ||
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फिर आग्रह कर पूछती, गुरु लगाओ पार |
मुझे नहीं हैं दीखते, साहिबज़ादे चार ||
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इस जग के हित के लिए, वारे पुत्र जो चार |
निरंकार की रज़ा में, जीवन बचे हज़ार ||
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ये सब मेरी मात हैं, औ ये मेरे लाल |
सब ही हैं अपने यहाँ,सबकी एक ही ढाल ||
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आपन-आपन सब करें,स्वार्थ कौ नहीं मोल ।
दोनों हाथ पसारके, कहे गुरू ने बोल ।।
— भावना ‘मिलन’ अरोड़ा