इलेक्ट्रानिक वाद्य यंत्रों ने भारतीय वाद्य यंत्रों को वर्तमान में पीछे छोड़ दिया है |शायद ,इलेक्ट्रानिक वाद्ययंत्रों ने इसके स्थान पर कब्ज़ा कर लिया हो वर्तमान में बाँसुरी की मधुर तान फिल्मों के संगीत से दूर जा रही है ।मधुर तान गीतों को मधुरता प्रदान करती एवं कर्णप्रिय संगीत को बढ़ावा भी देती है की तान में चुम्बकीय आकर्षण होता है| उदाहरण के तौर पर कृष्ण अपनी बांसुरी से ब्रजसुंदरियों के मन को हर लेते थे ।भगवान का बंशीवादन भगवान के प्रेम को ,उनसे मिलन की लालसा को अत्यंत बढ़ाने वाला था ।प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख्य है की बंसी की ध्वनि सुनकर गोपियाँ अर्थ ,काम और मोक्ष सबंधी तर्कों को छोड़कर इतनी मोहित हो जाती थी कि रोकने पर भी नहीं रूकती थी ।क्योकिं बाँसुरी की तान माध्यम बनकर श्रीकृष्ण के प्रति उनका अनन्य अनुराग ,परम प्रेम उनको उन तक खीच लाता था ।सखा ग्वाल बाल के साथ गोवर्धन की तराई ,यमुना तट पर गौओ को चराते समय कृष्ण की बाँसुरी की तान पर गौएँ व् अन्य पशु -पक्षी मंत्र मुग्ध हो जाते ।वही अचल वृक्षों को भी रोमांच आ जाता था । कृष्ण ने कश्यप गोत्र सांदीपनि आचार्य से अवंतिपुर (उज्जैन )में शिक्षा प्राप्त करते समय चौसठ कलाओं (संयमी शिरोमणि ) का केवल चौसठ दिन -रात में ही ज्ञान प्राप्त कर लिया था । उन्ही चौसठ कलाओं में से वाद्य कला के अन्तर्गत गुरुज्ञान के द्धारा बाँसुरी वादन का ज्ञान लिया था ।कहते है कि जब कृष्ण शिखरों पर खड़े होकर बाँसुरी वादन करते थे तो उसकी ध्वनि के साथ श्याम मेघ मंद -मंद गरजने लगता था । मेघ के चित्त में इस बात की शंका बनी रहती थी कि कहीं मै जोर से गर्जना कर उठूँ और इससे बाँसुरी की तान विपरीत पड़ जाएं व् कृष्ण कहीं उसमे बेसुरापन ले आएं तो मुझसे महात्मा श्रीकृष्ण का अपराध हो जाएगा । साथ ही कृष्ण को मित्र की दॄष्टि से देखकर उन पर घाम (धूप ) आने लगती है तो घन (बादल ) बनकर उनके ऊपर छाँव कर देता था ।शायद इसलिए उनका नाम घनश्याम भी है । खैर,संगीत के क्षेत्र में भारतीय यंत्रों का उपयोग किये जाने से फ़िल्मी गीतों में मिठास घुलेगी तथा संगीत के क्षेत्र में भारतीय वाद्य यंत्रों की उपयोगिता एवं महत्व को पहचाना जाकर उसके सफल परिणामों को पाया जा सकता है ।
— संजय वर्मा “दृष्टि”