शीत लहर
शीत लहर से आज,
जूझ रहा संसार है।
रूक गया सब काज,
बचना इससे है कठिन।।
पौष माघ की जाड़,
लोग ठिठुरते ठंड से।
कॅंपा रही है हाड़,
बेबस हैं इससे सभी।।
छायी धुंध अपार,
चलना भी दूभर हुआ।
ठंडी चली बयार,
कहीं हुआ हिमपात है।।
मौसम की है मार,
इससे बच सकते नहीं।
त्रस्त सभी नर नार,
हैं इसके आगोश में।।
बाल वृद्ध बीमार,
खूब परेशाॅं हैं यही।
जीना है दुश्वार,
फिर भी है धीरज धरे।।
मन में है विश्वास,
बदलेगा मौसम कभी।
है बसंत अब पास,
आने को है द्वार पर।।
सुखद सुहानी धूप,
दिनकर लेकर आ गया।
रंक रहे या भूप,
सबको यह प्यारा लगे।।
— रामसाय श्रीवास ‘राम’