गीतिका
साँपों को मैंने दूध पिलाया ,गलत किया ।
दुर्जन से भी संबंध निभाया,गलत किया ।
सीने पे वार करके ,मुझे मारता सही ,
चुपचाप जहर तूने पिलाया, गलत किया।
मैं हूँ प्रलय का गीत,मैं चुपचाप ठीक था,
जाने क्यूँ तूने मुझको बजाया,गलत किया।
मैं सोचता था तूने कपट छोड़ दिया है,
तू कालनेमि बनके फिर आया,गलत किया।
इतिहास शकुनि तुझको नही माफ करेगा,
चोपड़ का तूने खेल सजाया गलत किया ।
ये खून के जो दाग हैं,ये धुल न सकेंगे ,
तूने जो मेरा शीश कटाया गलत किया ।
जंगल में उसने आग लगा करके ‘गंजरहा’
मरुथल पे खूब अश्क बहाया, गलत किया।
—————© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी