ग़ज़ल
मात पिता को पीर दे अपमान करते हैं।
छवि को क्यों देते गिरा संतान करते हैं।
खुद को ही माने सही बाजी रहे जीती,
उनकी ना मानो तभी तूफान करते हैं।
पाला कितने लाड़ से उम्मीद थी कितनी,
मौका मिलते ही अजी अनजान करते हैं।
खुद गीले में सो तुम्हें बिस्तर दिया सूखा,
सब कुछ भूले क्यों सदा अपमान करते हैं।
दिल उनका तोड़ो नहीं कुछ तो उन्हें मानो,
जनक तुम्हारे हैं वहीं पहचान करते हैं।
महल तुम्हारा है मगर वो नींव के पत्थर,
तेरी खुशियों का वही सम्मान करते हैं।
ममता चाहे हर खुशी तुझको नजर आए,
नादान नहीं मगर वो अहसान करते हैं।
— ममता सिंह, नॉएडा