रूठ गए बदरा दिन फुहारों में गुजरा।
फूल न थे, जीवन फकत खारों में गुजरा।
कभी कभी अपने गाँव की भी सुध लो,
मासूम बचपन, जिन गलियारों में गुजरा।
मिलने आना है, वो वादा कर के भूल गए,
अपना सारा वक्त चाँद सितारों में गुजरा।
हर लम्हा हम उस पल को ढूंढते रहे,
आया न पलट के, जो पल बहारों में गुजरा।
वो पल ही कुछ और था, जब तुम साथ थे,
” सागर ” बेवजह ही वक्त हजारों में गुजरा।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ‘राजसागर’