जिंदगी तेरे प्यार में उम्र गुज़ार दी
भटकता रहा जवानी में तेरे दर पे
वसंत के आने की गंध पैगाम लाई
प्रेम की ज्योत को फिर जगा लाई
वसंत की आगमन की जैसे खुश्बू
महकते फूलों के संग पैगाम लाई
प्रेम प्रकृति निखरते इन मौसमों में
जिंदगी को पनाह दी जब क़ुदरत ने
प्यार की बगिया के फूल खिल गए
खुश्बू को सम्भाल रखा तुम्हारे लिए
मर जाऊँ तो याद रखना अरमान लिए
महकाती रहोगी तुम प्रेम के आँगन को।
— संजय वर्मा ‘दृष्टि’