खुद की राह बनाऊँगी
जीवन साथी चला गया, चाह जीने की चली गई
सिर के बाल झड़ गए, चेहरे की रौनक खो गई।
बहु-बेटी कहती हैं मुझसे, रंगदार कपड़े पहनो माँ
पापा की छवि बिंदिया में, उसको न मिटाओ माँ।
बेटा भी कहता है मुझसे, पहचान खुद की न भूलो
आँसू कमजोर बहाते हैं, उनको मत बरसाओ माँ।
दुख में डूबे बच्चों मुझे समझो, बिखरी हुई हूँ अंदर से
सिहर और घबरा जाती हूँ, होश भी कभी गंवा देती हूँ
चारों तरफ फैली दुनिया में, क्यों अपनों को ढूंढ रही ?
मोह माया से ऊपर उठ कर, एकांत भी तो चाह रही ।
फिर भी प्रण करती हूँ बच्चों, भीतर से नहीं टूटूँगी
संतुलित मन से कर्मयोगी बन, नियति से न हारूँगी
साथी की यादों को संग ले, मंजिल तक मैं पहुँचूँगी
थोड़ा सा वक्त तुम दे दो, खुद की राह बनाऊँगी ।
— अरुणा चाबा