विश्व पुस्तक मेले में आजादी के अमृत महोत्सव की गूंज
कोरोना महामारी के कारण लगातार तीन वर्षों तक ऑनलाइन आयोजित होने के बाद इस वर्ष नई दिल्ली में भव्य विश्व पुस्तक मेले की शुरूआत हो गई है, जो 25 फरवरी से शुरू होकर अब 5 मार्च तक यानी कुल 9 दिन तक चलेगा। इस पुस्तक मेले का इंतजार केवल राजधानी दिल्ली के लोग ही नहीं बल्कि देशभर के साहित्यकार और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग करते हैं। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा आयोजित इस पुस्तक मेले में जी-20 देशों के अलावा 30 से भी ज्यादा देश और 1000 से ज्यादा प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता शामिल हो रहे हैं। पुस्तक मेले में दो हजार से ज्यादा स्टाल रहेंगे और 500 कार्यक्रम तथा 50 सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होगा। मेले की थीम ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ है और भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में कई साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन मेले में किया जाएगा। पुस्तक मेले में इस वर्ष फ्रांस मेहमान देश है, इसलिए यहां फ्रांसीसी पुस्तकें, बड़ी संख्या में फ्रांसीसी साहित्यकार और प्रकाशक भी हिस्सा ले रहे हैं। फ्रांस से नोबेल पुरस्कार विजेता एनी एर्नाक्स सहित 16 फ्रांसीसी लेखक और 60 से ज्यादा प्रकाशक तथा सांस्कृतिक प्रतिनिधि मेले में भाग ले रहे हैं। एनबीटी-इंडिया के निदेशक के मुताबिक विश्व पुस्तक मेला इस वर्ष पुस्तकों और साहित्य का सबसे बड़ा उत्सव है और जी20 पवेलियन, एनईपी पवेलियन, एड-टेक जोन, युवा के साथ मेले के नए आकर्षण हैं।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा पहली बार ‘विश्व पुस्तक मेला’ 1972 में 18 मार्च से 4 अप्रैल तक दिल्ली के जनपथ रोड पर विंडसर प्लेस में आयोजित किया गया था, जिसमें दो सौ प्रकाशकों ने भाग लिया था और उसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने किया था। शुरुआत में पुस्तक मेले में 4-5 देश ही शामिल होते थे, जिनकी संख्या बढ़कर अब 30 से भी ज्यादा हो गई है। 1972 से 2012 तक पुस्तक मेले का आयोजन बाइनियल ईयर (सम संख्या का वर्ष) में किया जाता था, उसके बाद से इसका आयोजन प्रतिवर्ष होता है। विश्व पुस्तक मेले का इस साल 50 वर्षों का सफर पूरा हो रहा है और इस 50वीं वर्षगांठ के मौके पर मेले में डाक विभाग ‘एनबीटी स्टैंप’ जारी कर रहा है। इस बार मेले की विशेषता यह है कि यह इस वर्ष नए हॉल, नए स्थान और नई सुविधाओं के साथ अपने पुराने अंदाज में और पहले की तुलना में दो गुना बड़ा है। मेले के थीम पवेलियन में आजादी के गुमनाम नायकों पर आधारित करीब 200 पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाई गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मेले में अलग पवेलियन है, जहां नई शिक्षा नीति से जुड़ी सभी जानकारी देने का प्रयास किया गया है। पुस्तक मेले में बच्चों की गतिविधियां, लेखक मंच, न्यू डेली राइट टेबल पर वैश्विक स्तर वाली 30 देशों की 200 से ज्यादा पुस्तकों का अनावरण होगा।
देश में बच्चों के ऐसे भविष्य की परिकल्पना करते हुए, जहां बच्चे पुस्तकें पढ़ने तथा पुस्तक खरीदने के माहौल में बड़े हों और पुस्तक-पठन संस्कृति को फैलाने के उद्देश्य से 1 अगस्त 1957 को शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की स्थापना की गई थी। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास समाज के सभी आयु वर्ग के लिए सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में पुस्तकों के प्रचार और प्रकाशन में सक्रिय रहा है। हालांकि आधुनिकता के दौर में बच्चों के साथ-साथ बड़ों का लगाव भी पुस्तकों के प्रति कम हो गया है किन्तु बुद्धिजीवियों का स्पष्ट मानना है कि हर समय यह संभव नहीं कि पुस्तकों के स्थान पर मोबाइल या लैपटॉप आदि से पढ़ा जाए। दरअसल पुस्तकें हर समय साथ निभाती हैं और वास्तविक संतुष्टि पुस्तकें पढ़ने से ही मिलती है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि जिन लोगों की दिलचस्पी पुस्तकों में होती है, वे पुस्तक पढ़े बिना संतुष्ट नहीं होते, फिर भले ही उस पुस्तक में वर्णित बातें विभिन्न संचार माध्यमों से वे पहले ही जान चुके हों। ऐसे में लोगों की पुस्तकों के प्रति रूचि बनाए रखने में विश्व पुस्तक मेला जैसे आयोजन सार्थक भूमिका रहे हैं। अच्छी पुस्तकें बच्चों और युवा पीढ़ी को ज्ञानवान, संस्कारित और चरित्रवान बनाने में तो बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। बहरहाल, पुस्तक मेले के माध्यम से बच्चों के अलावा मेले में मौजूद अन्य लोगों को भी पुस्तकों के सकारात्मक प्रभाव से जोड़ने की पहल काफी सराहनीय है। विश्व पुस्तक मेले के आयोजन में इस बार बच्चों को विशेष रूप से केन्द्र में रखा गया है ताकि उनका जुड़ाव अच्छी पुस्तकों से ज्यादा से ज्यादा हो और वे अपने जीवन में मित्र के रूप में पुस्तक पढ़ने को स्वीकारें।
— योगेश कुमार गोयल