गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

भारत के लोकतंत्र का अपना उसूल है
हित में प्रजा के तंत्र को सब कुछ कुबूल है

धाराएँ संविधान की बदली गयीं मगर
जनहित ही संविधान की धारा का मूल है

संकल्प शक्ति अपनी ही कुछ क्षीण हो गयी
गणतंत्र वरना अपना तिरंगा त्रिशूल है

सत्यं शिवं से सुन्दरं यूँ ही नहीं जुड़ा
कल्याणकारी भाव तो चरणों की धूल है

माँ भारती को जिससे प्रतिष्ठा मिले सुनो
वो धर्म-कर्म श्रेष्ठ है भाषण फिजूल है

गणतंत्र अपना विश्व को परिवार मानता
मानव किसी भी वर्ण का डाली का फूल है

गणतंत्र संविधान की धाराओं में बँधा
खिलवाड़ संविधान में अक्षम्य भूल है

हम ‘शान्त’ ऐसे राष्ट्र के वासी हैं सोचिए
कैलाश जिसका शीश महासिन्धु कूल है

— देवकी नन्दन ‘शान्त’

देवकी नंदन 'शान्त'

अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता, बिजली बोर्ड, उत्तर प्रदेश. प्रकाशित कृतियाँ - तलाश (ग़ज़ल संग्रह), तलाश जारी है (ग़ज़ल संग्रह). निवासी- लखनऊ