आज भी महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों से अनभिज्ञ हैं
“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता” यही हमारी परंपरा रही है!!अर्थात् जहां नारी को पूजा जाता है वहां देवताओं का निवास माना जाता है । और यहां पर पूजा करने का अर्थ है – “नारी का सम्मान” किया जाना ।प्राचीन काल में नारी को समाज में विशिष्ट स्थान प्राप्त था, समय तथा परिस्थितियों के परिवर्तन के कारण महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन आया। वैदिक काल में मातृसत्तात्मक व्यवस्था अब पितृसत्तात्मक व्यवस्था मे परिवर्तित हो गई थी। समाज में समय परिवर्तन के साथ-साथ महिलाओं की स्थिति में नकारात्मक परिवर्तन आते गए, समाज में उनकी स्थिति दयनीय होती जा रही थी।
विश्व की आधी आबादी महिलाएं हैं परंतु आज भी उनकी स्थिति दोयम दर्जे की मानी जाती है । जहां आज भी समाज में लड़कों और लड़कियों के लालन-पालन में भेदभाव किया जाता है। समाज में लिंग-भेद जैसे भेदभाव व्याप्त हो वहां पर समानता और महिला अधिकारों की बात करना कितना उचित है? जबकि वास्तविकता कुछ और ही है।आज समाज में देश में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध जैसे कन्या भ्रूण हत्या, बलात्कार ,दहेज के मामलें,लिंगभेद, शोषण शारीरिक- मानसिक प्रताड़ना, घरेलू हिंसा आदि।
महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध जब तक जड़ से समाप्त नहीं होंगे तब तक सशक्त राष्ट्र की कल्पना करना बेमानी लगता है। किसी राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी पुरुष की। महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए समय-समय पर कई महत्वपूर्ण कार्य किए जाते हैं। प्रत्येक वर्ष 8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। महिला अधिकार की बात करना अथवा महिला दिवस मनाना ।मात्र एक दिन महिला अधिकारों पर चर्चा करना कहां तक उचित है जबकि आज भी महिलाओं की समाज में स्थिति असमानता से भरी हुई है। भारत में महिलाओं को स्वतंत्रता के बाद मतदान का अधिकार पुरुषों के समान दिया गया ।परंतु वास्तविक समानता में महिलाओं की स्थिति गौर करने लायक है, आज हमारे समाज में वे सभी महिलाएं नजर आती हैं जो समाज के प्रत्येक क्षेत्र में अपना एक मुकाम हासिल कर चुकी है और हम सब उन्हीं पर गर्व महसूस करते हैं ।परंतु इस कतार में दूसरी और वह महिलाएं भी सम्मिलित हैं जो हर दिन घर में, समाज में महिला होने के कारण असमानता का दंश झेल रही है। महिला घर में बेटी, पत्नी, मां, बहन के रूप में प्रताड़ित हो रही है, वहीं दूसरी ओर वह घर से बाहर भी छेड़छाड़, बलात्कार जैसे कुकृत्य को सह रही हैं क्योंकि वह एक औरत है सिर्फ इसलिए? यह हमारे लिये विचारणिय है। आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस दौर में भी लड़कियों को बोझ माना जाता है ।कन्या भ्रूण हत्या जैसी गैर कानूनी कृत्य हमारे समक्ष आते हैं और ऐसा तब है जब लड़कियों ने समाज में हर क्षेत्र में हर कदम पर स्वयं को साबित किया है। फिर भी समाज में महिलाओं की स्थिति में उनके प्रति रवैया में ज्यादा फर्क नहीं आया है ।
आज हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं जिसका वास्तविक अर्थ भौतिक या आध्यात्मिक, शारीरिक या मानसिक सभी स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें सशक्त करना है। इसके अंतर्गत महिलाओं से जुड़े सामाजिक,आर्थिक ,राजनीतिक और कानूनी मुद्दों पर संवेदनशीलता और सरोकार व्यक्त किए जाते हैं ।आज परिदृश्य बदल रहा है महिलाओं की भागीदारी सभी क्षेत्र में उल्लेखनीय रूप से बढ़ रही है। परंतु अपने क्षेत्र में विशेष उपलब्धियां अर्जित कर महिलाओं के कुछ उदाहरणों से हम संपूर्ण महिलाओं की उन्नति का आकलन नहीं कर सकते। हमारी सरकारों द्वारा भी बेटियों के अधिकारों उनकी सुरक्षा के लिए जागरूकता कार्यक्रमों का एवं योजनाओं का निर्माण करती है,जैसे सेव द गर्ल चाइल्ड, चाइल्ड सेक्स रेशों आदि। बालिकाओं के लिए स्वस्थ्य एवं सुरक्षित वातावरण बनाने एवं बेटी बढ़ेगी तो राष्ट्र बढ़ेगा यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। क्योंकि बेटी पढ़ लिख कर सिर्फ एक घर एक परिवार को ही आगे नहीं बढ़ाती बल्कि वह समाज और राष्ट्र को भी आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।आज बेटियां समाज के प्रत्येक क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने वर्तमान सदी को महिलाओं के लिए समानता सुनिश्चित करने वाली सदी बनाने का आग्रह किया था। उनका कहना था कि न्याय, समानता तथा मानवाधिकारों के लिए लड़ाई तब तक अधूरी है, जब तक महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव जारी है।
हमारे समाज में बेटियों को बेटों से कम आंका जाता है। उन्हें अपने जीवन में संघर्षों का बेटों की तुलना में अधिक सामना करना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति को जीवन में संघर्ष अपने जन्म लेने के बाद करना होता है परंतु बेटियों के मामलें में यह बात सही नहीं है, बेटियों को अपने जन्म से पहले ही, जन्म लेने दिया जाए या न लेने दिया जाए।उन्हें इस संसार में आने के लिए ही संघर्ष करना पड़ता है ।यह हमारे लिए सोचनीय एवं मानवीय स्तर पर यह स्थिति पीड़ादायक है। बेटा और बेटी में अंतर करना ईश्वर द्वारा दिए गए इस जीवन मे भेद करने के समान है।
आज बेटियां आगे बढ़ रही हैं।हमारा यह दायित्व है कि हम बेटियों को पढ़ाऐं और आगे बढ़ाएं। महान राजनीतिज्ञ नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था कि ,”तुम मुझे एक योग्य माता दे दो, मैं तुम्हें एक योग्य राष्ट्र दूंगा”। अर्थात किसी राष्ट्र के विकास में पुरुष और महिला दोनों की समान सहभागिता होती है।
हमारा संविधान भी महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देता है ।भारतीय संविधान में व्यक्ति, परिवार, समाज एवं राष्ट्र के संबंध में प्रावधानों का अंतिम लक्ष्य देश के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्वतंत्रता एवं न्याय मिल सके तथा अवसरों की समानता हो और महिलाओं पुरुषों को समान अधिकार मिले। जिससे वह बिना किसी भेदभाव के अपना विकास कर सकें। भारत में महिलाओं के कानूनी अधिकार में समानता हेतु समान वेतन का अधिकार, समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार -वेतन एवं मजदूर में लिंग आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता आदि कई समानता के अधिकार प्रमुख हैं।
भारतीय संविधान में महिलाओं के अधिकारों में अनुच्छेद 14 अनुच्छेद 15,अनुच्छेद 16,अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 23, अनुच्छेद 40,अनुच्छेद 42,अनुच्छेद 46,अनुच्छेद44 अनुच्छेद 243,अनुच्छेद 325-326 आदि महत्वपूर्ण है। भारत का संविधान विश्व में सबसे अच्छा समानता प्रदान करने वाले दस्तावेजों में से एक है।
भारतीय संविधान के जनक निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने महिलाओं के महत्व के संबंध में कहा था कि “अपनी गृहणी अच्छे परिवार से आए ऐसी आशा सभी रखते हैं किंतु जब तक उनके लिए स्वस्थ परिवारों का निर्माण नहीं होगा तब तक अच्छी गृहणी का निर्माण नहीं होगा”।
नारी की उन्नति के साथ ही परिवार की उन्नति का प्रश्न जुड़ा हुआ है ।अतः नारी के महत्व को स्वीकारा जाना चाहिए।
हमारे देश के सरकार ने “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” कार्यक्रम की शुरुआत की जो समाज को प्रगति के रास्ते पर ले जाने में एक आधार स्तंभ के रूप में प्रकट होती हैं।
कई योजनाएं जैसे “समग्र बाल विकास सेवा”,”धनलक्ष्मी योजना”, “सबला योजनाएं”आदि। इन सभी योजनाओं का उद्देश्य लड़कियों को खासकर किशोरियों को सशक्त बनाना है ताकि वे आगे चलकर एक बेहतर समाज का निर्माण में योगदान दे सकें।आज हम महिला दिवस मना रहे हैं ,क्या कोई एक दिन ही महिलाओं के लिए विशेष रूप से मना लेने से या फिर मात्र अधिकारों या कानून बना लेने से उन्हें इन अधिकारों का वास्तविक लाभ मिल पाता है ?उनके जीवन में आने वाली चुनौतियों का वे इन अधिकारों व कानूनों के माध्यम से सामना कर पाते हैं ?क्या उन्हें उनकी पूर्ण जानकारी है ?
हमें इस विषय पर गौर करने की जरूरत है।
आज हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्या, लिंगभेद ,मातृत्व मृत्यु दर बढ़ रहा है। महिलाओं के खिलाफ भारतीय समाज में अपराध महिलाओं की वास्तविक स्थिति का आभास दिला देते हैं। मात्र कानूनों का निर्माण कर देने से ही महिलाओं को उनके अधिकार नहीं मिलते, महिलाओं को इसके लिए जागरूक करने और उन्हें कानूनों का वास्तविक लाभ मिल सके ,और इसे पूर्ण करना हमारा दायित्व है। हमारे देश की संसद में महिला सांसदों की बात करें तो महज14.3 प्रतिशत महिला सांसद ही आधी आबादी का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। जबकि अमेरिका में 32% महिला सांसद हैं तो वहीं बांग्लादेश जैसे देश में 21% है ।राजनीति में बराबरी का हक दिया जाना चाहिए ।ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2019-2020 के अनुसार 95 साल लग सकते हैं राजनीतिक असमानता खत्म होने में, आर्थिक आधार पर महिला-पुरुष आर्थिक समानता में 257 साल लग जाएंगे।
हमारा देश ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2019-2020 के अनुसार वैश्विक स्तर पर राजनीति में 98वें, स्वास्थ्य में 150वें,शिक्षा में 192वें एवं आर्थिक क्षेत्र में 149वें स्थान पर है ।महिला -पुरुष की बराबरी के मामले में हमारा देश भारत 112 वें स्थान पर है।
हमारे देश की न्याय व्यवस्था की उच्चतम इकाई सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को सशक्त करने की दिशा में भी कई कानूनी अधिकार दिए हैं- जिसमें “सती प्रथा निवारण अधिनियम 1987”, “दहेज निवारण अधिनियम 1961″,”अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956”, “बाल विवाह अधिनियम 1929”, “औषधियों द्वारा गर्भ गिराने से संबंधित अधिनियम 1971”, “स्त्री अशिष्ट रूपण प्रतिबंध अधिनियम 1986”, “प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994”, “समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976”, “घरेलू हिंसा महिला संरक्षण अधिनियम 2005” आदि।
आज हालात बदले हैं महिलाओं की स्थिति में हमें सकारात्मक सुधार नजर आता भी है ।महिलाएं बदलते सामाजिक परिवेश में स्वयं सिद्ध होने का प्रयास कर रही हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि वह आजादी से अब तक कई महिलाएं शिक्षित हुई है ।महिला सामाजिक, आर्थिक ,राजनीतिक ,शिक्षण, विधि, विज्ञान, साहित्य, मीडिया, चिकित्सा, खेल, उद्योग, सेना, आईटी क्षेत्र आदि कई क्षेत्र में सफलतापूर्वक प्रतिनिधित्व कर रही है। परंतु आज भी पुरुष प्रधान समाज की सोच प्रबल है।
महिलाओं को असली आजादी नहीं मिली है। महिला के प्रति देश में बढ़ते अपराध हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई है।
देश में महिलाओं के प्रति उनके कानूनी अधिकारों के प्रति दृष्टिकोण सकारात्मक हुआ है। परंतु यह इतना काफी नहीं है ।हमें सशक्त मानसिकता के साथ महिलाओं को समानता का अधिकार एक आवश्यक हथियार के रूप में देना होगा ।इसके द्वारा वे अपने अस्तित्व को बनाऐं एवं बचाए रख सकने में साबित होगी।नारी समानता का नारा मात्र नारा बन कर न रह जाए,उन्हें उनके अधिकारों की पूरी जानकारी हो।
पुरुष प्रधान समाज में अपने मेहनत, संघर्ष एवं समर्पण से दुनिया की इस आधी आबादी ने अपना परचम लहराया है एक मिसाल कायम की है ।लेकिन महिलाओं को और अधिक मजबूत कदमों से आगे बढ़ाना होगा ,शिक्षित होना होगा, अपने अधिकारों के प्रति और सजग एवं जागरूक होना होगा ।तभी महिलाएं अपने अधिकारों का वास्तविक उपयोग कर पाएंगी ।मात्र मानवाधिकार महिला अधिकारों के निर्माण से ही समाज में पुरुष एवं महिला समानता नहीं आएगी इसके लिए पुरुषवादी विचारधारा को भी बदलना होगा । महिलाओं की स्थिति में कितना परिवर्तन आया है यह देखने के साथ ही हमें आम लोगों की महिलाओं के प्रति सोच में कितना परिवर्तन आया है यह देखने की भी आवश्यकता है।महिलाओं को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से समाज के प्रत्येक क्षेत्र मे आगे बढ़ाने में पुरुषों द्वारा सकारात्मक मदद करनी होगी। स्त्रियों को कमज़ोर मानना असंवैधानिक है। शास्त्रों में भी स्त्री को शक्ति रूपा कहा है ।पुरुष यदि वास्तविकता में महिला को सशक्त करना चाहते हैं तो पुरुषों द्वारा महिलाओं को स्वतंत्रता, समानता और सम्मान देना होगा।और यही समय की मांग है।
— रीना यादव