यात्रा वृतांत – एक दिन अलीगढ़ में
अलीगढ़ शहर अच्छा है । इसका प्राचीन नाम कोइल या कोल माना जाता है । अलीगढ़ की पहचान तालों से है । अलीगढ़ के ताले विश्व प्रसिद्ध हैं । अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भी काफी प्रसिद्ध है । अलीगढ़ के निवासी हिंदी व ब्रजभाषा बोलते हैं । इस शहर की घूमने फिरने की प्रसिद्ध व अच्छी जगह हैं, अलीगढ़ किला, जामा मस्जिद, खेरेश्वर मंदिर, मौलाना आजाद लाइब्रेरी, तीर्थधाम मंगलायतन, बाबा बरछी बहादुर दरगाह, शेखा झील, दोर फोर्टस आदि ।
मैं अलीगढ़ अब तक दो बार घूम चुका हूं । प्रथम बार अलीगढ़ महोत्सव में गया था । मित्र जैस चौहान के सौजन्य से । द्वितीय बार गया था, अभी अभी बीती पिछली 6 मार्च 2023 को । मित्र अवधेश से फोन पर बात हुई कि अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज चलना है । हामी भरी और बेग (झोला) उठाकर फतेहाबाद के लिए भाई विजय के साथ बाइक से निकल पड़ा । सर्व प्रथम डाकघर गया कुछ डाक डिस्पैच कराई और फ्री हो गया । अवधेश को फोन मिलाया । उसने आधा -पौन घंटा इंतजार करवाया ।
हमने एक सज्जन के यहां से बाइक ली और चढ़ गए यमुना एक्सप्रेस वे पर । आगरा होते हुए हमारी बाइक ने अलीगढ़ की तरफ दौड़ना शुरू कर दिया । बोलते -चालते हम हाथरस की सीमा में प्रवेश कर गये । रास्ते में सड़क किनारे लगे एक ठेले पर छोले कुलछों का आनंद लिया । अवधेश को स्वाद नहीं आया । मुझे तो आया क्योंकि पैसे अवधेश खर्च कर रहा था ।
नाश्ता पानी करके हमारी बाइक फिर से भागने लगी थी । अब हम घूमते -घांमते अलीगढ़ शहर में प्रवेश कर गये । हमने अपनी चिन्हित जगह को गूगल मैप में लगा लिया । मोबाइल को देखते हुए और लोगों से पूछते -पांछते हम पहुंच गये, जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज । कॉलेज बहुत बड़ा है । हमने फोन मिलाया, हम जिस कार्य से हॉस्पिटल पहुंचे थे उसके लिए। मैंने सबसे पहले अपना मोबाइल चार्ज किया। अवधेश कुछ कागजी कार्य कराने निकल गया। दो घंटे बाद हमने रक्तदान किया। मेरा यह प्रथम बार था। अवधेश कई बार कर चुका था । अन्य सभी कार्य निपटाकर हम चलने को तैयार हुए, तो पूरन सिंह जी ने कहा- अंधेरा हो गया है, सुबह चले जाना । यहीं कहीं ब्रेंचों पर रात गुजार लेंगे। हमने मना कर दिया ।
चलिए आपको पूरन सिंह जी का परिचय देते हैं । दरअसल इनकी डेढ़ वर्षीय बेटी के लिए ही हम रक्तदान करने आये थे । इनकी बेटी का हृदय के छेद का ऑपरेशन हुआ था ।
पूरन सिंह जी से विदा लेकर हम वापिस निकल पड़े । बाइक हम बारी -बारी से चला रहे थे, परंतु अधिक समय तक अवधेश ही चला रहा था । एक जगह हम रुके और हमने राजस्थानी फालूदा का लुफ्त उठाया । कुछ आगे चलकर एक साफ-सुथरे ढाबे पर खाना खाया ।
उजली चांदनी रात और बाइक का सफर वह भी यमुना एक्सप्रेस वे पर… हल्की सर्दी लग रही थी, परंतु सफर का आनंद आ रहा था । खेत, जंगल, बिजली की लाइटें सब अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे । रात्रि के करीब एक बजे मैंने अपने घर की कुंडी खटखठाई, संयोग से पत्नी की आंख खुल गई। वरना मुझे चोरों की तरह दीवार फांदकर घर में घुसना पड़ता ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा