भोर
भोर हुई चिड़ियों ने गाया गाना
बिखर गया चहुं ओर उजाला
नव उमंग से मोर नाचते
नई -नवेली कलियों पर भंवरे मंडराते ।
पूरब में सूरज खड़े लिए धूप का रथ
देखो हुआ अंधेरा सारा छू-मंतर
पेड़ों की डालों पर फुदक रही गोरैया
छत पर दाना बिखराता है रामू भैया ।
सारे जग को रोशन करता सूरज एक
ठीक समय पर आकर रोज जगाता
हमसे बदले में कुछ नहीं पाता
फिर भी धूप सुनहरी हमको दे जाता ।
सूरज के स्वागत में जल्दी उठ जायें,
झटपट अपनी दिनचर्या पूर्ण कर जायें
नव किरणों के साथ नव किरणों सा मुसकायें,
मत करना आना-कानी, इसी तरह रोज जग जायें ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा