माँ की ममता
शोभा आज सुबह से ही बड़ी विचलित सी नज़र आ रही थी अपनी बेटी सुमन को लेकर | एक तो सुमन का उपवास था उस दिन और उसकी तबियत भी थोड़ी ख़राब थी | पर उसका कॉलेज जाना बहुत ज़रूरी था | सुबह से ही शोभा शुरू हो गयी “बेटा आज मत जा, घर पर ही आराम कर ले, तेरी तबियत भी ठीक नहीं, पता नहीं मेरा मन क्यों घबरा रहा है, जैसे कोई अनहोनी सी होने वाली हो”
“अरे माँ, क्या तुम भी, तुम्हें पता है मेरा जाना कितना ज़रूरी है आज, मेरा सेमिनार है, और उस टीचर का तुम्हें पता ही है, अगर नहीं गयी तो क्या हाल करेगी वो मेरा, आराम तो मैं आकर भी कर लूँगी, पर उसकी डाँट नहीं सह सकती, उससे अच्छा तो मैं जैसे तैसे चली ही जाऊंगी” |
“पर बेटा, ध्यान से जाना, मेरे को चिंता हो रही तुम्हारी” |
“अरे माँ तुम तो ऐसे कर रही हो जैसे मैं कोई पहली बार बाहर जा रही हूँ घर से, चलो समय हो रहा है, जल्दी से नाश्ता कर लूँ, फिर बस भी पकड़नी है” |
सुमन जल्दी से नाश्ता करके चली गयी |
शोभा उसको बार बार फ़ोन करती रही और उसका हाल पूछती रही |
कॉलेज जाकर सुमन ने शोभा को बताया “माँ, मैं ठीक ठाक पहुँच गयी हूँ, तुम चिंता न करना”|
सुमन का सेमिनार हो रहा था, उसका फ़ोन बज रहा था, जबकि वो साइलेंट पर था, सुमन समझ गयी थी कि माँ ही कर रही होगी | सेमिनार के बाद, सुमन ने देखा तो माँ का ही फोन आया हुआ था |
“अरे माँ, इतने सारे कॉल्स? मेरा सेमिनार चल रहा था, इसलिए नहीं उठा सकी”
“अच्छा, तू ठीक तो है न बेटा ?”
“हाँ माँ, बिलकुल ठीक और सेमिनार भी ठीक हो गया” |
“अच्छा ऐसा करियो, कल की छुट्टी ले आइयो, आराम कर लियो थोड़ा” |
“अरे माँ, कल की कल देखती हूँ, चलो अब फ़ोन रखती हूँ “
सुमन ने फ़ोन रखा और सोचने लगी आज माँ को क्या हो रहा है, रोज़ तो इतने फोन कभी नहीं करती | सुमन अपनी क्लास लगाने चली गयी |
छुट्टी का समय हो चला | माँ ने फिर फ़ोन करके हाल पूछा |
सुमन ने फिर कहा, “सब ठीक है, निकल रही हूँ बस कॉलेज से” |
रोज़ की तरह सुमन जैसे ही बस लेने को सड़क पार करने लगी, एक ऑटो वाला बड़ी तेज रेस में आया और सुमन को टक्कर मारकर चला गया | बेहोश होकर वो सड़क पर गिर पड़ी, पर किसी ने उठाया तक नहीं | कुछ समय बाद जब होश आया, तो उसने अपने मुख से एक ही नाम लिया “माँ” |
अचानक वही बस आ गयी जिसमें सुमन अकसर जाया करती थी | उस हालत में देखकर, बस के कंडक्टर ने उसे सहारा देकर बस में बिठाया और पूछने लगा, “ये सब कैसे हुआ ? उसके मुंह से आवाज़ नहीं निकल पा रही थी, उसने इशारे से बोला ‘पता नहीं, मैं बेहोश पड़ी थी”, कंडक्टर ने सुमन से कोई नंबर माँगा घर में से किसी का, पर वो बोल कहाँ पा रही थी, और उसका फ़ोन भी गिर कर ऑफ हो गया था | उसने सुमन को सीट पर बिठाया | सुमन के घर आने पर कंडक्टर ने बस रुकवाई और उसको घर तक छोड़ने उतर गया, ड्राइवर को बोलकर |
जैसे ही सुमन घर के बाहर गली में प्रवेश करने लगी, उसने एक अजीब सा दृश्य देखा, उसकी माँ गली के बाहर बैठी थी इतनी गर्मी में | सुमन और कंडक्टर दोनों हैरान हो गए उसकी माँ को देखकर | कंडक्टर ने सारा हाल बताया उसकी माँ को और सुमन झट से माँ की गोद में गिर पड़ी, “माँ तुम सच कह रही थी आज सुबह “मत जा, तुम्हें कैसे पता लग गया कि आज कुछ होने वाला है, मैंने तो फ़ोन भी नहीं किया तुम्हें”|
माँ की आँखों से आंसू निकल पड़े, बेटा, “‘माँ’ शब्द ही ऐसा होता है, जो अपने बच्चों पर आने वाले हर संकट का आभास उसको पहले ही हो जाता है, मुझे सुबह से ही कुछ अजीब से ख्याल आ रहे थे, इसलिए मना कर रही थी तुझे, अब देख वही हुआ” |
शोभा ने कंडक्टर का शुक्रिया किया और सुमन को सीधे डॉक्टर के पास ले गयी | डॉक्टर ने एक्स – रे किया, तो पाँव की हड्डी टूटी हुई थी | “इनको पलस्तर चढ़ाना पड़ेगा, दो महीने के लिए”|
पलस्तर चढ़ाया और सुमन को घर लाये | सुमन बस माँ के गले लगे रोये जा रही थी, “माँ देख लो तुम कह रही थी न, कल की छुट्टी ले आइयो, देख लो अब कितनी लम्बी छुट्टी लेनी पड़ेगी, मैंने तुम्हारी बात क्यों नहीं मानी”
और माँ ने ममता से सराहा सुमन को “चल अब ज्यादा न सोच, जो होना था, हो गया, मैं कबसे यहां खड़ी तेरी राह देख रही थी, सुबह से कुछ न खाया, न पीया, बस तेरी कुशलता की कामना करती रही, कोई नहीं, पलस्तर ही है न, और कोई नुक्सान तो नहीं हुआ न मेरी बेटी को, ये दो महीने तो ऐसे निकल जाएंगे जैसे हवा चलती है, तेज बहाव से” |
दोनों माँ बेटी भावुकता में खोये रहे | आज सुमन ने माँ शब्द की गहराई को और अच्छे से समझा | उसने सच में महसूस किया “माँ” शब्द का वास्तविक अर्थ, माँ कैसे जान लेती हो तुम बिन कहे सब व्यथा अपने शिशु की?? अद्भुत हो तुम, अद्भुत है तुम्हारी ममता |
— डॉ. सोनिया गुप्ता