कहानी

कहानी – आपको गंदा नहीं करूंगी

पच्चास साल की उम्र मे व्यक्ति परिपक्व हो जाता है और समाज भी यह मान लेता है कि इसके दिल वाले रिश्ते नहीं हो सकते लेकिन मैं इस उम्र मे भी दिल-दिमाग दोनों से युवक जैसा ही थो सोचना, उठना-बैठना, अभिव्यक्ति, ताकना सब कुछ युवको जैसा ही था ।
कुछ लोग कह भी सकते है कि बुढ्ढी घोडी ,लाल लगाम । पर मैं ऐसी बातों मे बेफ्रिक रहता हूॅ अपने अंदाज मे जीवन गुजारता हूॅ और हमेशा कौशिष् करता हॅू कि दोस्त भी कम उम्र के युवाआंे को बनाउ। उनके साथ रहने से जवान होने का अहसास होता है और यह अहसास ही उर्जा देता है ।
तो एक दिन आफिस मे बैठ बोरिंग काम कर रहा था फाईलों को देख रहा था काम मे ईयर फोन था और मेरे रश्के कंवर …. गीत सुन रहा था एक महिला ने कमरे मे प्रवेश किया सामान्य से नाक-नक्श, श्याम रंग ,पतली-दुबली सी काया लेकिन कुछ था उसमे जो आकर्षक था उसकी आंखों मे शौकिया थी मैंने आज ही यहा ज्वाईनिंग दी है कहते हुए उसने मिठाई का डिब्बा मेरी तरफ बढा दिया । मधुमेह रोग को भूलकर मैंेने एक पूरा पीस उठा लिया और मुंह मे डाल दिया उसको बैठने का ईशारा किया उसकी शिक्षा, परिवार, निवास स्थान आदि की जानकारी ली उसने भी मेरे परिवार के बारे मे पूछा ।
शाम को घर जाने को बाईक निकाली तो वह गेट से आगे खडी थी क्योकि मेरा घर उसकी गली से हाकर ही गुजरता था तो मैंने उसे लिफ्ट दे दी । 35 वर्ष की युवती का बाई के पीछे बैठे होने के विचार मात्र से मैं जवान हो गया बाईक सामान्य गति से चलने लगी सामान्य बातचीत से शौक कि तरफ चली गई और अब यह रोजाना का काम हो गया उसके घर से उसे लेता और फिर छोड देता ।
उसके एक बेटी है जो स्कूल मे पढती है पति सरकारी स्कूल मे अध्यापक है खाता-पीता ,मस्त मोला परिवार है उसका पति भी जानने लगा था कि हम साथ-साथ आते जाते है मेरे उम्र को जानकर या मेरे निश्चल व्यवहार को समझकर बेफ्र्रिक रहा होगा वैसे में कोई आवारा टाईप आदमी हूॅ भी नहीं दोस्ती जरूर नई युवतियों से रही लेकिन शारीरिक निकटता नहीं बना सका । युवतियां सोचती मै थोडा कामेडी टाईप का हॅू मजाक मे बात करता हॅू तो वे मेरी बात को गम्भिरता से नहीं लेती है और ऐसा मेरे साथ कालेज के दिनों से चल रहा है ।
तो वह आने-जाने के बीस किलामीटर के सफर को सुहाना बना रही थी घर से आफिस आते जाते गीत सुनाती उसकी आवाज मे कशिश है, मर्मस्पर्शी है मन मे कोई मेल नही तो दोस्ती लम्बी चलती ही है पर मेरे मन मे तो कालापन आ जाता है कभी मजाक मे अपनी बात कह देता हॅू और वो इसे मजाक मे ही लेती है ।
आफिस मे भी फूर्सत के क्षण हम साथ-साथ गुजारने लगे, केन्टिन जाते तो साथ-साथ जाते । हिसाब की पक्की है वह एक-एक रूपए का हिसाब रखती यहा तक की घर से आफिस आने-जाने का पेट्ोल खर्च भी बराबर बाटती कभी मेरा एक भी रूपया न तो उसने मारा न ही मुझे मारने दिया यच कहूॅ दोस्त मेटेरियल है वह ।
केन्टिर मे टिफन खोलती तो मुंह बनाती पसन्द की सब्जी नही होती तो फिर टिफन बंद करने लगती तो तब मेरे टिफन की सब्जी, सेव लेकर पेट भरती कहती ’मैं अकेले तो खा ही नहीं सकती हॅू ।’ व्यावहारिक ऐसी कि हमारे स्टाफ के प्रत्येक सदस्य का बर्थडे याद था उसे और विश्ज्ञ करनेके बाद मिठाई की फरमाईश करती । सभी से बोलना, हंस-हंस कर बात करना ,हल्का-पुल्का कमेंटस करना उसकी आदत मे था कोई भी उसकी बात का बुरा नही मानता थ सभी की चहेती थी वैसे स्टाफ मे ही और महिलाएं थी पर वे रिजर्व स्वभाव की थी दूरी बनाए रखती थी ।
हम दोनों घंटो बैठे रहते आपस मे बाते करते और बाते भी क्या दुनिया जहान की। छोटी-छोटी बाते और बडे-बडे मतलब । पंख लगाकर समय गुजर जाता । जिन्दगी मेहरबान थी उस पर खुशियो की बरसात होती रहती थी लगता मैं 30-35 उम्र का युवक हूॅ मन मौजी, उन्मुक्त , चहचहाता । मैं उसकी अच्छाई की तारिफ करता तो वो मेरी अच्छाई कि करती , सलाह देती , समझाती और मैं मान भी लेता उसकी बात और जब नहीं मानता तो नाराज हो जाती ।
मुझे नहीं मालुम की हमारा स्टाफ हमारे सम्बन्धों को क्या नाम देता है शायद नही भी देता है देने लायक कुछ था भी नहीं सिर्फ औ सिर्फ खुशी थी, मनमोहक वक्त था, बहतरीन रिश्ता था और कभी-कभी बाते करते -करते किया जाने वाला हल्का सा स्पर्श था ।
और फिर उसके प्रमोशन से साथ स्थानान्तरण की बाते आने लगी मैं उदास हो गया मन खिन्न हो गया अभी तो वक्त गुजरा भी नही और अभी से बिछडने के संदेशे आने लगे एक दिन मैंने कहा तुम मेरे सपनों मे आती रहती हो …. वह मतलब समझ गई बोली सर, मैं आपको गंदा नहीं करूंगी आप अच्छे है और अच्छे ही रहे ।
और वो दिन भी आ गया जब वह मुझे , स्टाफ को छोडकर चली गई नये स्थान पर अब मेरे पास सिर्फ यादे है खुबसूरत स्मृतियां ।
— भारत दोसी