जिन्दगी जीने का हक
अपनी अपनी जिन्दगी जीने का हक़ सबको है अपने तरीके से, किसी को किसी के जीने के ढंग से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए । क्योंकि सबके अपने विचार सपने अलग होते है ! दुनिया को रंगीन बनाने और खूबसूरत बनाने के लिये क ई तरीके की अलग -अलग सोच होना जरुरी है। तब ही दुनिया को रंगीन और खूबसूरत बना सकते हैं, अगर एक ही सोच से दुनिया में सब जीयेगें तो कुछ नया नहीं बुन सकेगे न बना सकेगे । हम सब की जिम्मेदारी है दुनिया कॊ बेहतरीन और बेहतर बनाने की …
आप एक लेखक होकर कम़जोर सोच के साथ ईष्यालू मानसिकता रखते हैं तो शायद आप अपने को कम और कमज़ोर आंकते हैं कहीं न कहीं । लोगों के तस्वीरें डालने पर अगर आपको आपत्ति है तो आप भी डालें आपको हक़ है अपनी जिन्दगी जीने का , किसी दूसरे से जीने का और खुश होने का तरीक़ा नहीं सीखना खुद करना है । दुनिया की सोच बदलने बाले पहले अपनी खुद की सोच बदलनी पड़ेगी! क्योंकि की समाज को एक नयी दिशा देने के लिये अपने चहरे का मुखौटा हटाना पड़ेगा, जो खुद को समझने और दूसरों को समझाने के लिये बेहद जरूरी है। समाज में रहने के लिये समाज को आगे बढ़ाना पड़ेगा, उसके लिये सम़ाज के तर्क वितर्क भी करने पड़ेंगे।
लेकिन इसका सम्बन्ध किसी भी व्यक्ति से उसके पहनावे, उसकी stylist होनें को ,उसकी खूबसूरती को लेकर बहुत चर्चा करते है परंतु खूबसूरत और सुंदर सभी होते है बस अपनी सोच और देखने के नजरिया अलग होता है। घर के खानपान रहन सहन पर तीर न चलाने को लेकर शामिल है । लोग सही गलत चुनने और समझने की बजाए गुट बनाने पर लगे है और दूसरों के सही गलत बातों पर ध्यान नहीं देते इसकी वजह उसकी मेहनत और शौक हैं ,जो वो खुद पैदा करता है उसे कोई देता नहीं है । व्यक्ति के शारीरिक ढाँचे का विकास प्रकृति द्वारा होता है और उसका उच्च विकास उसकी माँ ,घर का माहौल ,सोच और दुनिया के बहारी यात्रा से परिवर्तन आता है।
हमें खुश होना चाहिए कि हमारे देश के लोग भी दूसरे देशों की अपेक्षा बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जब हम पढ़ाई शिक्षा को दूसरे देशों से बराबरी करने की सोच रख सकते हैं तो ये सब की क्यों नहीं । और देश के हित के साथ अपने हित के लिये खुद मेहनत करने को और बदलने को तैयार है तो सामने बाला उसे बदलने क्यों नहीं देना चहाता. एक तरफ तो हम अपने को और समाज को , देश को बदलने की इच्छा रखते है । दूसरी तरफ उसे आगे बढ़ाने से रोकते है। समाज के दायरे को बनाया जाये और उसे आगे बढ़ाने के लिये भी कहा जाये तो कैसे समाज का विकास होगा। समाज की कुरीतियों को पहने रहने से हमारे शरीर का लिबास तो बदल नहीं सकता ना ही देश का
कुछ कुंठित लोगों के मन से ऐसे पारम्परिक विवादास्पद और ईष्यालू विचार कभी नहीं निकल सकते ,जब तक आप खुद नही तय करेगें आगे बढ़ना । सबसे पहला काम लेखकों कों बदलना है क्योंकि आप दुनिया को आधार और आकार दोनों दे रहे हो ? इसमें स्त्री और पुरुष दोनों शामिल हैं। समाज और देश भलाई के लिये खुद को पहले दर्जे पर रखो बदलने के लिये । समाज से जातिवादी और घटिया सोच दोनों हमारे अंदर शामिल होने पर कोई आगे नहीं बढ़ा सकता । ऐसी सोच में शामिल हर वर्ग हर तपके और हर उम्र के लोग भी शामिल हैं जो कि शर्मिंदा करने ,और होने पर मजबूर कर रहे हैं।
अपने ओहदे को कायम रखना खुद पर निर्भर करता है। ये राजनेता या राजनीतिक सोच रखने से आप आगे नहीं बढ़़ सकते हैं। अपने विचारों को ताकत देनी पड़ेगी ,अपने विश्वास में और सोच में विस्तार देना होगा । कुछ लोगों का कहना ये भी है कि मैं हमेशा स्त्री पर ही लिखती हूँ ? मेरा स्त्री पर लिखने का मतलब पुरुषों से बैर या उनके प्रति कोई दुश्मनी नहीं है ,मैं पुरुषों को उतना ही सम्मान देती हूँ जितना स्त्रियों को क्योंकि हम एक दूसरे के पूरक और पूरन दोनों हैं।
जब हम एक दूसरे के पूरक और पूरन हैं तो फिर स्त्री को अपने बराबरी के हक़ के लिये लड़ना क्यों पढ़ रहा है। पुरुषों को क्यों किसी हक़ के लिये नहीं लड़ना पड़ा । बस बात केवल बराबरी के हक़ और दर्जे की है कोई दौलत छीनने और हक़ मारने की नहीं? अब स्त्री ने अपने को इतना मजबूत और शिक्षित बना लिया है कि वो कभी पुरुषों पर निर्भर नहीं रह सकती , खुद कमाकर खा सकती और खा रही है।
बस अभी कुछ पिछड़ी मानसिकता के लोग बचे है जो विकसित नहीं हुये मानसिक तौर पर अपने को तैयार नहीं कर पाये हैं ,लेकिन उनको आगे हम सबको बढ़ना पढे़गा क्योंकि कुछ लोगों की मानसिकता कमज़ोर और लाचार लोगों से गुलामी कराने की है । वही लोग नहीं चहाते की उनका विकास हो परंतु कुछ पढे़ लिखे समृद्ध लोग अपनी गुलामी के लिये उन्हें बचा कर रखना चहाते है जो बहुत अफसोस की बात है और शर्म की भी । गुलामी से बचने के लिये मानसिक विकास का होना बहुत जरुरी है।
— शिखा सिंह