पुस्तक
पुस्तक अंबुधि ज्ञान का, डूबें सौ सौ बार।
गहरा जाके देखिए , मोती मिलें हजार।।
पुस्तक निर्मल नीर सी, धुलती मन के दोष।
जीवन का उपवन खिले,महके मानस कोष।।
पुस्तक है सहगामिनी, संचित उच्च विचार।
पग पग रखती ध्यान है,भरती अंतस प्यार।।
मानव जीवन के लिए, पुस्तक सुधा समान।
जिज्ञासा संग सीखता, करता अनुसंधान।।
पुस्तक मानव के लिए, सुदृढ़ सेतु स्वरूप ।
पूर्वज जिसको भर गए,अद्भुत नेहिल कूप।।
पुस्तक पढ़ पढ़ मूढ़ भी,सीख गया विग्यान।
निकट सत्य के आ गया,भूला अंध विधान।।
पतिता को पावन करे,पुस्तक हरि का भोग।
अहंकार को मेटती , हरती हिय के रोग।।
निर्बल में साहस भरे, हर मन भरे उड़ान।
पुस्तक पढ़ माटी भई, हीरे मोती खान।।
पुस्तक शीतल चाँदनी, अंधकार से दूर।
उज्ज्वल किरणों से करे, द्वेष भावना दूर।।
— सीमा मिश्रा