मुक्तक/दोहा

पुस्तक

पुस्तक अंबुधि ज्ञान का, डूबें  सौ सौ बार।
गहरा जाके देखिए ,  मोती  मिलें  हजार।।

पुस्तक निर्मल नीर सी, धुलती मन  के दोष।
जीवन का उपवन खिले,महके मानस कोष।।

पुस्तक है सहगामिनी, संचित  उच्च विचार।
पग पग रखती ध्यान है,भरती अंतस प्यार।।

मानव जीवन के लिए, पुस्तक सुधा समान।
जिज्ञासा संग सीखता, करता  अनुसंधान।।

पुस्तक मानव के लिए, सुदृढ़  सेतु स्वरूप ।
पूर्वज जिसको भर गए,अद्भुत नेहिल कूप।।

पुस्तक पढ़ पढ़ मूढ़ भी,सीख गया विग्यान।
निकट सत्य के आ गया,भूला अंध विधान।।

पतिता को पावन करे,पुस्तक हरि का भोग।
अहंकार  को मेटती ,  हरती  हिय के  रोग।।

निर्बल में साहस भरे,  हर  मन  भरे उड़ान।
पुस्तक पढ़ माटी भई,   हीरे  मोती  खान।।

पुस्तक  शीतल  चाँदनी,  अंधकार  से  दूर।
उज्ज्वल किरणों से करे, द्वेष भावना  दूर।।

— सीमा मिश्रा

सीमा मिश्रा

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका व स्तंभकार, उ0प्रा0वि0-काजीखेड़ा,खजुहा,फतेहपुर उत्तर प्रदेश मै आपके लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका से जुड़कर अपने लेखन को सही दिशा चाहती हूँ। विद्यालय अवधि के बाद गीत,कविता, कहानी, गजल आदि रचनाओं पर कलम चलाती हूँ।