व्यापार
कितने शब्द बिकते हैं
किताबों के बाजार में
कोई जाति धर्म नहीं
अल्फा़जों में
निगाहें खरीदती हैं
सच्चाई को
मुल्क के व्यापार में
चमड़ी उधड़ जाती है
झूठ के पात्र में
न्याय करने का हक़ रखती हैं ,
निगाहें
कानून के दरबार में
फिर भी बिक जाते हैं
अल्फ़ाज किताबों के बाजार में
मुद्दतों से औंधे पड़े
न्याय की दरकार में
शब्द बिक जाते हैं
निगाहों के बाजार में
व्यापार हो जाता है
झूठ का
शालीनता में बदलकर
बिक जाता है
इंसान न्याय के बाज़ार में!
— शिखा सिंह