कविता

व्यापार

कितने शब्द बिकते हैं
किताबों के बाजार में
कोई जाति धर्म नहीं
अल्फा़जों में
निगाहें खरीदती हैं
सच्चाई को
मुल्क के व्यापार में
चमड़ी उधड़ जाती है
झूठ के पात्र में
न्याय करने का हक़ रखती हैं ,
निगाहें
कानून के दरबार में
फिर भी बिक जाते हैं
अल्फ़ाज किताबों के बाजार में
मुद्दतों से औंधे पड़े
न्याय की दरकार में
शब्द बिक जाते हैं
निगाहों के बाजार में
व्यापार हो जाता है
झूठ का
शालीनता में बदलकर
बिक जाता है
इंसान  न्याय के बाज़ार में!

— शिखा सिंह

शिखा सिंह

जन्मस्थल - कायमगंज स्नातकोत्तर- के.एन.कालेज कासगंज. प्रकाशन- विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में आलेख एवं कविताएँ प्रकाशित जैसे - लखनऊ से, उत्कर्ष, लखनऊ से रेवान्त पत्रिका ,जनसंदेश टाईम्सअखबार,अग्रधारा पत्रिका, अनुराग ,अनवरत, कविता संग्रह, भोजपुरी पंचायत, लोक चिंतक कवि हम - तुम कविता संग्रह और अन्य पत्रिकाओं में भी प्रकाशित सृजन पोर्टल दिल्दी बुलेटिन पोर्टल अन्य !! सम्पर्क-जे .एन.वी.रोड़ फतेहगढ़ फर्रुखाबाद (उ प्र,) पिन कोड- 209601 e-mail [email protected]